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१३० : सम्बोधि
(२) जो संयम-असंयम की ओर प्रवहमान रहता है। (३) जो सर्वथा संयम की ओर उन्मुख रहता है।
वीर्य के मार्गों के कारण व्यक्ति के भी तीन रूप वनते हैं-बाल, बाल-पंडित और पंडित।
विरति का अर्थ है-पदार्थ के प्रति आसक्ति का परित्याग और अविरति का अर्थ है - पदार्थ के प्रति व्यक्त या अव्यक्त आसक्ति।
विरति और अविरति की अपेक्षा से मनुष्यों के तीन प्रकार होते हैं : बाल-असंयमी, जिसमें कुछ भी विरति नहीं होती। बाल-पंडित-उपासक, जो यथाशक्ति विरति करता है। इसमें विरति और
अविरति दोनों का अस्तित्व रहता है। पंडित-पूर्ण संयमी, मुनि।। ये तीनों जैन पारिभाषिक शब्द हैं।
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