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अध्याय १५ : ३५५
प्रक्षीण नहीं होता। जीसस ने कहा है-पहले प्रभु का राज्य प्राप्त कर ले।' शेष सब अपने आप मिल जाएगा।' अपने को पा लेने के बाद व्यक्ति को और क्या चाहिए ? सभी चाह मिट जाती हैं।
'चाह मिटी चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह ।
जिसको कुछ नहीं चाहिए सो शाहन को शाह ।' वह स्वयं सम्राट हो जाता है । बोधि का न मिलना ही दरिद्रता है। सच्ची संपत्ति वही है जो हमारे साथ जा सके। किन्तु जो केवल बाहर से ही समृद्ध होना चाहते हैं, वे असली सम्पत्ति से चूक जाते हैं। जिनकी दृष्टि सम्यग नहीं है, विचार पवित्र नहीं है, ऐसे व्यक्तियों को बोधि अगले जन्म में भी दुर्लभ है।
लेकिन जो बाहर से हटकर भीतर की यात्रा में चल पड़ते हैं, बाहर के सुखों में आसक्त नहीं होते और न उनके लिए प्रयत्नशील रहते हैं उनका समस्त श्रम स्वयं की खोज में होता है। ऐसे व्यक्ति बोधि से वञ्चित नहीं रहते।
अपापं हृदयं यस्य, जिह्वा मधुरभाषिणी। . उच्यते मधुकुम्भः स, नूनं मधुपिधानकः ॥४६॥
४६. जिस व्यक्ति का हृदय पापरहित है और जिसकी जिह्वा मधुरभाषिणी है,वह मधुकुम्भ है और मधु के ढक्कन से ढका हुआ है।
अपापं हृदयं यस्य, जिह्वा कटुकभाषिणी। उच्यते मधुकुम्भःस, नूनं विषपिधानकः॥४७॥
४७. जिस व्यक्ति का हृदय पापरहित है, किन्तु जिसकी जिह्वा कटुभाषिणी है,वह मधुकुम्भ है ओर विष के ढक्कन से ढका हुआ है।
सपापं हृदयं यस्य, जिह्वा मधुरभाषिणी। उच्यते विषकुम्भः स, नूनं मधु पिधानकः ॥४८॥
४८. जिस व्यक्ति का हृदय पाप-सहित है, किन्तु जिसकी जिह्वा मधुरभाषिणी है, वह विषकुम्भ है और मधु के ढक्कन से ढका हुआ है।
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