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१८२ : सम्बोधि
त्रिमासमुनिपर्याय आत्मध्यानरतो यतिः।
देवासुरकुमाराणां, तेजोलेश्यां व्यतिव्रजेत् ॥२६॥ २६. तीन मास का दीक्षित मुनि असुरकुमार देवों के सुखों को लांघ जाता है।
चतुर्मासिकपर्याय, आत्मध्यानरतो यतिः। ज्योतिष्कानां ग्रहादीनां, तेजोलेश्या व्यतिव्रजेत् ॥२७॥ २७. चार मास का दीक्षित मुनि ग्रह आदि ज्योतिष्क देवों के सुखों को लांघ जाता है।
पञ्चमासिकपर्याय, आत्मध्यानरतो यतिः । सूर्याचन्द्रमसोरेव, तेजोलेश्यां व्यतिव्रजेत् ॥२८॥ २८. पांच मास का दीक्षित मुनि चाँद और सूरज के सुखों को लांघ जाता है।
षाण्मासिकपर्याय, आत्मध्यानरतो यतिः ।
सौधर्मेशानदेवानां, तेजोलेश्यां व्यतिव्रजेत् ॥२६॥ २६. छह मास का दीक्षित मुनि सौधर्म और ईशान देवों के सुखों को लांघ जाता है।
सप्तमासिकपर्याय, आत्मध्यानरतो यतिः। सनत्कुमारमाहेन्द्र-तेजोलेश्यां व्यतिव्रजेत् ॥३०॥ ३०. सात मास का दीक्षित मुनि सनत्कुमार और माहेन्द्र देवों के सुखों को लांघ जाता है ।
अष्टमासिकपर्याय, आत्मध्यानरतो यतिः।
ब्रह्मलान्तकदेवानां, तेजोलेश्यां व्यतिव्रजेत् ॥३१॥ ३१. आठ मास का दीक्षित मुनि ब्रह्म और लान्तक देवों के सुखों को लांघ जाता है।
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