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आमुख
इस अध्याय मे आज्ञा, हिंसा और अहिंसा का विशद विवेचन किया गया है। भगवान् महावीर ने कहा-'आणाए मामगं धम्म'-आज्ञा में मेरा धर्म है। आज्ञा का अर्थ है-वीतराग का कथन, प्रत्यक्षदर्शी का कथन । वही कथन यथार्थ और सत्य होता है जो वीतराग द्वारा कथित है। वीतराग व्यक्ति वह है जो राग-द्वेष और मोह से परे है। उसकी अनुभूति और ज्ञान यथार्थ होता है। वह आत्माभिमुख होता है, अतः उसकी समस्त प्रवृत्ति और उसका सारा कथन आत्मा की परिक्रमा किए चलता है, इसलिए वह सत्य है। 'आज्ञा में मेरा धर्म है-' इसका तात्पर्यार्थ यह है कि 'वीतरागता ही आत्मधर्म है । इसके अतिरिक्त सारा बहिर्भाव है । जितना वीतरागभाव है उतना ही आत्म-धर्म है।
'हिंसा जीवन की अनिवार्यता है'- इसे प्रत्येक मननशील व्यक्ति स्वीकार करता है। अतः इससे सर्वथा बच पाना संभव नहीं है। परन्तु इसका विवेक जागृत होने पर अहिंसा के क्षेत्र में बहुत आगे बढ़ा जा सकता है। ___ जैन दर्शन में गृहस्थ के लिए यथाशक्य हिंसा के त्याग का निर्देश है। गृहस्थ संपूर्ण हिंसा से बच नहीं सकता। परन्तु अनर्थ हिंसा से वह सहज बच सकता है। यह उसका विवेक है।
हिंसा के कितने प्रकार हैं ? उनकी व्याख्याएं क्या हैं ? अहिंसा की क्या परिभाषा है और उसकी उपासना कैसे संभव हो सकती है ?-इन सब प्रश्नों का समाधान इसमें किया गया है।
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