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आमख
बंधन आवरण है और मुक्ति निरावरण । ज्ञान का विकास, श्रद्धा का विकास और शक्ति का विकास आवृत दशा में नहीं होता। बंध और मोक्ष दोनों एक-दूसरे के प्रतिपक्षी हैं। मोक्ष में बंधन नहीं है और बंधन में मुक्ति नहीं। बंध क्या है और मुक्ति क्या है, इसी जिज्ञासा का समाधान यहां प्रस्तुत है।
स्व-शासन मुक्ति है और पर-शासन बंधन । परतंत्रता को न चाहते हुए भी हम पर-शासन से नियंत्रित हैं। स्व-शासन को चाहते हुए भी उसे ला नहीं सकते। यही दिशा-भ्रम है। मिथ्यात्व, विपरीत मान्यता, अविरति, प्रमाद, कषाय, और योग-यह पर-शासन है। पर-शासन का जुआ उतर जाता है तब स्व-शासन (सम्यक्त्व, विरति, अप्रमाद, अकषाय और अयोग) का उदय होता है। यह मुक्ति का एक सुव्यवस्थित क्रम है।
प्रवृत्ति और निवृत्ति बंध-मोक्ष के कारण है। जीव की प्रवृत्ति और निवृत्ति के पांच-पांच प्रकार हैं । प्रवृत्ति से बंध होता है और निवृत्ति से मोक्ष । प्रवृत्ति स्थल और सूक्ष्म-दो प्रकार की होती है। योग स्थूल प्रवृत्ति है। मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद और कषाय-ये सूक्ष्म प्रवृत्तियां हैं। इन दोनों प्रकार की प्रवृत्तियों का संग्राहक शब्द है-'आस्रव'।
इस अध्याय में इनका तथा बंध और मोक्ष की प्रक्रिया का विवेचन है।
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