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से स्प्रिंग की तरह वापस उछलेगा। सहन नहीं करना है, 'सोल्यूशन' लाना है।
जहाँ अपमान हो, वहाँ पर न्याय ढूँढने जाए तो मूर्खता होगी, वहाँ तो 'तप', वही एक उपाय है। संपूर्ण स्वतंत्र जगत् में कि जहाँ पर किसीमें किसीकी दख़ल नहीं है, वहाँ पर किसीको दोष देने का रहा ही कहाँ?
___टकराव में मौन हितकारी। बाहर मौन और अंदर घमासान, वे दोनों साथ में होंगे, तो काम का नहीं है। पहले मन का मौन होना चाहिए।
"एडजस्ट एवरीव्हेर' इतनी ही आज्ञा यदि 'ज्ञानी' की पाली तो उसका हल आ जाएगा!
जो पत्नी पर अपना जोर चलाने गए, वे नाचलणीया (खोटा सिक्का) बन गए। उसके बजाय पहले से ही खोटा सिक्का बन गए होते तो पूजा में तो बैठ पाते?!
सामनेवाले को समझाने की छूट है, डाँटने की नहीं।
मानव-स्वभाव अपने नीचेवालों को कुचलता रहता है और ऊपरी को साहब-साहब करता है। 'अन्डरहेन्ट' का रक्षण करना, वह तो ध्येय होना चाहिए।
दीवार से सिर टकरा जाए, वहाँ पर आपको क्या करना चाहिए? 'भूल किसकी है?' उसका पता लगाना हो तो देख लेना की भुगत कौन रहा है? 'भुगते उसकी भूल।'
घर में एक व्यक्ति के साथ एकता रही, तब भी बहुत हो गया! एकता अर्थात् कभी भी उसके साथ मतभेद नहीं पड़े।
जहाँ पर मतभेद हैं, वहाँ पर चिंता, दु:ख और झगड़े है। जहाँ मनभेद है, वहाँ पर डायवोर्स। और तनभेद है वहाँ पर अर्थी।
बच्चों के सामने माँ-बाप को कभी भी झगड़ा नहीं करना चाहिए। मियांभाई बीबी को बहुत संभालकर रखते हैं। बाहर झगड़ आते हैं लेकिन घर में प्रेम से रहते हैं। घर में ही झगड़े करें तो अच्छा-अच्छा भोजन कहाँ
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