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आप्तवाणी-३
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दादाश्री : यह तो आपने मान लिया है कि मैं मौन रहा इसलिए ऐसा हुआ। रात को मनुष्य उठा और बाथरूम में जाते समय अंधेरे में दीवार के साथ टकरा गया, तो वहाँ पर आप मौन रहे, क्या इसलिए वह टकराई?
मौन रहो या बोलो, उसे स्पर्श नहीं करता है, कोई लेना-देना नहीं है। आपके मौन रहने से सामनेवाले पर असर होता है, ऐसा कुछ नहीं होता, या अपने बोलने से सामनेवाले पर असर होता है ऐसा भी कुछ नहीं होता।
ओन्ली साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स, मात्र वैज्ञानिक सांयोगिक प्रमाण हैं। किसी की इतनी-सी भी सत्ता नहीं है। इतनी-सी भी सत्ता के बगैर यह जगत् है, उसमें कोई क्या करनेवाला है? इस दीवार के पास यदि सत्ता होती तो इन्हें भी सत्ता होती! आपके पास इस दीवार से झगड़ने की सत्ता है? उसी तरह सामनेवाले के साथ चीखने-चिल्लाने का क्या अर्थ? उसके हाथ में सत्ता ही नहीं है, वहाँ! इसीलिए आप दीवार जैसे बन जाओ न! आप पत्नी को झिड़कते रहो, तो उसके अंदर जो भगवान बैठे हैं, वे नोंध करते हैं कि यह मुझे झिड़कता है। और जब वह आपको झिड़के तब आप दीवार जैसे हो जाओगे तो आपके अंदर बैठे भगवान आपको हेल्प करेंगे।
जो भुगते उसीकी भूल प्रश्नकर्ता : कुछ ऐसे होते हैं कि हम कितना भी अच्छा व्यवहार करें, फिर भी वे समझते नहीं है।
दादाश्री : वे न समझें तो उसमें आपकी ही भूल है कि वह समझदार क्यों नहीं मिला आपको? उसका संयोग आपको ही क्यों मिला? जब-जब हमें कुछ भी भुगतना पड़ता है, तो वह भुगतना अपनी ही भूल का परिणाम है।
प्रश्नकर्ता : तो हमें ऐसा समझना चाहिए कि मेरे कर्म ही ऐसे हैं?
दादाश्री : बेशक। अपनी भूल के बिना हमें भुगतना नहीं पड़ता। इस जगत् में ऐसा कोई नहीं कि जो हमें थोड़ा भी, किंचित् मात्र दुःख दे और यदि कोई दुःख देनेवाला है तो वह अपनी ही भूल है। तत्त्व का दोष नहीं है, वह तो निमित्त है। इसलिए भुगते उसकी भूल।