Book Title: Aptavani Shreni 03
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 318
________________ [८] कुदरत के वहाँ गेस्ट कुदरत, जन्म से ही हितकारी इस संसार में जितने भी जीव हैं वे कुदरत के गेस्ट हैं, प्रत्येक चीज़ कुदरत आपके पास तैयार करके भेजती है। यह तो आपको कढ़ापा (कुढ़न, क्लेश)-अजंपा (बेचैनी, अशांति, घबराहट) रहा करता है, क्योंकि सही समझ नहीं है और ऐसा लगता है कि 'मैं करता हूँ'। यह भाँति है। बाकी किसी से इतना सा भी नहीं हो सकता। यहाँ जन्म होने से पहले, हमारे बाहर निकलने से पहले लोग सारी तैयारियाँ करके रखते हैं! भगवान की सवारी आ रही है! जन्म लेने से पहले बालक को चिंता करनी पड़ती है कि बाहर निकलने के बाद मेरे दूध का क्या होगा? वह तो दूध की कुंडियाँ आदि सब तैयार ही होता है। डॉक्टर, दाईयाँ तैयार होते हैं। और दाई न हो तो नाईन भी होती ही है। लेकिन कुछ न कुछ तैयारी तो होती ही है, फिर जैसे 'गेस्ट' हों! 'फर्स्ट क्लास' के हों उसकी तैयारियाँ अलग, 'सेकिन्ड क्लास' की अलग और 'थर्ड क्लास' की अलग, सब क्लास तो हैं न? यानी कि आप सभी तैयारियों के साथ आए हैं। तो फिर हाय-हाय और अजंपा किसलिए करते हो? जिनके 'गेस्ट' हों, उनके वहाँ पर विनय कैसा होना चाहिए? मैं आपके यहाँ 'गेस्ट' होऊँ तो मुझे 'गेस्ट' की तरह विनय नहीं रखना चाहिए? आप कहो कि 'आपको यहाँ नहीं सोना है, वहाँ सोना है', तो मुझे वहाँ सो जाना चाहिए। दो बजे खाना आए तो भी मुझे शांति से खा लेना चाहिए। जो परोसे वह आराम से खा लेना पड़ता है, वहाँ शोर नहीं मचा सकते। क्योंकि 'गेस्ट' हूँ। अब यदि 'गेस्ट' रसोई में जाकर कढ़ी हिलाने लगे तो

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