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[३] दुःख वास्तव में है?
'राइट बिलीफ़' वहाँ दुःख नहीं प्रश्नकर्ता : दादा, दुःख के विषय में कुछ बताइए। यह दुःख किसमें से उत्पन्न होता है?
दादाश्री : आप यदि आत्मा हो तो आत्मा को दुःख होगा ही नहीं कभी भी और आप चंदूलाल हो तो दुःख है। यदि आप आत्मा हो तो द:ख है ही नहीं, बल्कि जो दुःख हो, वह भी खत्म हो जाता है। 'मैं चंदूलाल हूँ' वह 'रोंग बिलीफ़' है। यह मेरी वाइफ है, ये मेरी मदर हैं, फादर हैं, चाचा हैं, या मैं एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट का व्यापारी हूँ, ये सभी तरह-तरह की रोंग बिलीफ़ हैं। इन सभी रोंग बिलीफ़ों के कारण दुःख उत्पन्न होता है। यदि रोंग बिलीफ़ चली जाएँ और राइट बिलीफ़ बैठ जाए तो जगत् में कोई दु:ख है ही नहीं। और आप जैसे लोगों (खातेपीते सुखी घर के) को दुःख है नहीं। यह तो, सब बिना काम के नासमझी के दुःख हैं।
दुःख तो कब माना जाता है? दुःख किसे कहते हैं? इस शरीर को भूख लगे, तब फिर खाने का आठ घंटे-बारह घंटे न मिले, तब दुःख माना जाता है। प्यास लगने के बाद दो-तीन घंटे पानी नहीं मिले तो वह दुःख जैसा लगता है। संडास लगने के बाद संडास में जाने नहीं दे, तो फिर उसे दु:ख होगा या नहीं होगा? संडास से भी अधिक, ये पेशाबघर हैं. वे सब बंद कर दें न, तो सभी लोग शोर मचाकर रख दें। इन पेशाबघरों का तो महान दुःख है लोगों को। इन सभी दु:खों को दुःख कहा जाता है।