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आप्तवाणी-३
एक, वहाँ मेरा-तेरा होता होगा? मैं तुरंत ही समझ गया और तुरंत ही पलट गया, मुझे जो कहना था उस पर से पूरा ही मैं पलट गया, मैंने उनसे कहा, मैं ऐसा नहीं कहना चाहता हूँ। आप चाँदी के बरतन देना और ऊपर से पाँच सौ एक रुपये देना, उन्हें काम आएंगे।' 'हं... इतने सारे रुपये तो कभी दिए जाते होंगे? आप तो जब देखो तब भोले के भोले ही रहते हो, जिस किसीको देते ही रहते हो।' मैंने कहा, 'वास्तव में मुझे तो कुछ आता ही नहीं।
देखो, यह मेरा मतभेद पड़ रहा था, लेकिन किस तरह से सँभाल लिया पलटकर! अंत में मतभेद नहीं पड़ने दिया। पिछले तीस-पैंतीस वर्षों से हमारे बीच नाम मात्र का भी मतभेद नहीं हुआ है। बा भी देवी जैसे हैं। मतभेद किसी जगह पर हमने पड़ने ही नहीं दिए। मतभेद पड़ने से पहले ही हम समझ जाते हैं कि यहाँ से पलट डालो, और आप तो सिर्फ दाएँ और बाएँ, दो तरफ से ही बदलना जानते हो कि ऐसे पेच चढेंगे या ऐसे पेच चढ़ेंगे। हमें तो सत्रह लाख तरह के पेच घुमाने आते हैं। परंतु गाड़ी रास्ते पर ला देते हैं, मतभेद नहीं होने देते। अपने सत्संग में बीसेक हज़ार लोग और चारेक हज़ार महात्मा हैं, लेकिन हमारा किसी के साथ एक भी मतभेद नहीं है। जुदाई मानी ही नहीं मैंने किसी के साथ!
जहाँ मतभेद है वहाँ अंशज्ञान है और जहाँ मतभेद ही नहीं, वहाँ विज्ञान है। जहाँ विज्ञान है, वहाँ सर्वांशज्ञान है। सेन्टर में बैठे, तभी मतभेद नहीं रहते। तभी मोक्ष होता है। लेकिन डिग्री ऊपर बैठो और 'हमारातुम्हारा' रहे तो उसका मोक्ष नहीं होता। निष्पक्षपाती का मोक्ष होता है।
समकिती की निशानी क्या? तब कहे, घर में सब लोग उल्टा कर डालें फिर भी खुद सीधा कर डाले। सभी बातों में सीधा करना वह समकिती की निशानी है। इतना ही पहचानना है कि यह मशीनरी कैसी है, उसका 'फ्यूज़' उड़ जाए तो किस तरह से 'फ्यूज़' ठीक करना है। सामनेवाले की प्रकृति के साथ एडजस्ट होना आना चाहिए। हमें तो, सामनेवाले का 'फ्यूज़' उड़ जाए, तब भी हमारा एडजस्टमोन्ट होता है। लेकिन सामनेवाले का एडजस्टमेन्ट टूटे तो क्या होगा? 'फ्यूज़' गया।