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आप्तवाणी-३
दादाश्री : आपके अंदर भी वही आनंद भरा हुआ है, मेरे अंदर भी वही आनंद भरा हुआ है, सभी में वही आनंद है, एक ही स्वरूप है। जिसका जितना पुरुषार्थ और जितना 'ज्ञानी' का राजीपा, इन दोनों का गुणाकार हुआ कि चल पड़ा (आत्म प्रगति होने लगी) ।
आत्मा : अनंत शक्ति
खुद में खुद की संपूर्ण शक्तियाँ व्यक्त हो जाएँ, वही परमात्मा है। लेकिन ये शक्तियाँ आवृत हो गई हैं, वर्ना खुद ही परमात्मा है।
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हर एक जीव मात्र में, गधे, कुत्ते, गुलाब के पौधे में भी आत्मा की अनंत शक्तियाँ हैं, लेकिन वे आवृत हैं इसीलिए फल नहीं देतीं। जितनी प्रकट हुई होंगी, उतना ही फल देंगी । इगोइज़म और ममता पूरी तरह से चले जाएँ, तो वह शक्ति व्यक्त होगी।
पुद्गल के प्रति जितनी सस्पृहता थी और आत्मा के प्रति निःस्पृहता थी, तो अब पुद्गल के प्रति निःस्पृहता जितनी अधिक होती जाएगी, उतनी ही आत्मा पर सस्पृहता आएगी ।
पुद्गल की, आत्मा की सभी शक्तियाँ एक मात्र प्रकट परमात्मा में ही लगाने जैसी हैं। मनुष्य में पूर्ण परमात्म शक्ति है, जिसका उपयोग करना आना चाहिए। 'ज्ञानीपुरुष' सभी शक्तियाँ देने को तैयार है, शक्ति आपके अंदर ही पड़ी हुई है। लेकिन आपको ताला खोलकर लेने का हक़ नहीं है। ज्ञानीपुरुष खोल देंगे, तब वे निकलेंगी। इस हिन्दुस्तान का एक ही मनुष्य पूरे वर्ल्ड का कल्याण कर सकता है, उसमें इतनी सारी शक्तियाँ हैं, लेकिन ये शक्तियाँ अभी उल्टे रास्ते पर जा रही हैं, इसलिए सबोटेज हो रहा है। इसको कंट्रोलर की आवश्यकता है । 'ज्ञानीपुरुष' और 'सत्पुरुष' और 'संतपुरुष' इसके निमित्त होते हैं ।
भगवान से कौन-सी शक्ति माँगनी चाहिए ? 'यह जो तूफान चला है, इसमें ज्ञान शक्ति और स्थिरता शक्ति दीजिए, ऐसे माँगना चाहिए। पुद्गल शक्ति नहीं माँगनी चाहिए, ज्ञान शक्ति माँगनी चाहिए।
अंदर अनंत शक्तियाँ हैं । अनंत सिद्धियाँ हैं, लेकिन अव्यक्त रूप