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प्रतिक्रमण करके छूट जाने जैसा है। जहाँ पर राग है, वहाँ पर द्वेष होगा ही।
घर में बच्चों के साथ डीलिंग करते समय 'ग्लास विथ केयर' का लेबल पढ़ना चाहिए। उन्हें हथोड़े मारते रहेंगे तो क्या होगा? प्रेम से ही सामनेवाला सुधरता है। सामनेवाला चाहे जितना उल्टा करे फिर भी उसका उल्टा नहीं दिखे, वही सच्चा प्रेम है !
माँ-बाप अर्थात् बालकों के ट्रस्टी ।
घर को बग़ीचे के रूप में देखना है । खेत के रूप में नहीं । जिस तरह बग़ीचे में कोई मोगरा, कोई गुलाब या कोई धतूरा भी होता है, वैसे ही घर में अलग-अलग प्राकृत फूलोंवाले होते हैं । बाप मोगरा होता है तो वह ऐसा आग्रह रखता है कि घर के सभी लोग मोगरे जैसे ही बनें, तो कैसे चलेगा? वह तो फिर खेत बन गया ! बगीचे का मज़ा ही नहीं आएगा ! गार्डनर बनना है।
जिसमें मन-वचन-काया की एकता हो, वही सामनेवाले को सुधार सकता है।
एक आँख में प्रेम और दूसरे में सख़्ती । इस तरह के व्यवहार से व्यवहार आदर्श रहेगा ।
बच्चों को सुधारने के लिए उनके साथ मित्रता करनी चाहिए। बच्चे प्रेम ढूँढते हैं। वे प्रेम से ही सुधरते हैं । प्रेम से तो पूरा जगत् वश हो जाता है।
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बालकों को हररोज़ सूर्यपूजा करना और प्रार्थना करना सिखाना चाहिए कि, 'मुझे तथा जगत् को सद्बुद्धि दो, जगत् का कल्याण करो । '
पति-पत्नी को एक-दूसरे को आमने-सामने समाधान देने के प्रयत्न हों तो मतभेद नहीं होंगे। मन में तय करना कि सामनेवाले को समाधान देना है और ‘समभाव से निकाल ' करना है, बाद में फिर हुआ सो न्याय ।
‘टकराव टालना' जिसके लिए हर एक जगह पर यह जीवनसूत्र बन जाएगा, उसका संसार पार हो जाएगा । सहन नहीं करना है, सहन करने
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