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आप्तवाणी-३
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प्रश्नकर्ता : आत्मातत्व का चिंतवन तो मनुष्य को करना ही चाहिए न?
दादाश्री : हाँ, करना चाहिए। जब तक 'ज्ञानीपुरुष' उसे सचेतन नहीं बना देते, तब तक वह चिंतवन शुद्ध चिंतवन नहीं माना जाता, लेकिन शब्द से चिंतवन करता है। वह एक प्रकार का उपाय है। रास्ते में जाते हुए बीच का स्टेशन है वह।
बाहर के संयोगों के दबाव से आत्मा में कंपनशक्ति उत्पन्न होती है, तब परमाणु ग्रहण करता है। कंपनशक्ति एक घंटे के लिए बंद हो जाए तो मोक्ष में चला जाए! 'मैं डॉक्टर हूँ, मैं स्त्री हूँ और दादा पुरुष हैं', ऐसा समझे तो कभी भी मोक्ष नहीं होगा। 'खुद आत्मा है', ऐसा समझे तभी मोक्ष होगा।
आत्मा : ऊर्ध्वगामी स्वभाव आत्मा का स्वभाव है कि ऊर्ध्वगमन में जाना-मोक्ष में जाना, स्वभाव से ही वह ऊर्ध्वगामी है। पुद्गल का स्वभाव ही है कि नीचे खींचता है।
___ एक सूखा तुबां हो, उस पर तीन इंच की चीनी की कोटिंग की हुई हो, फिर उसे समुद्र में डाल दें, तो पहले तो वह वज़न से डूब जाएगा। फिर जैसे-जैसे चीनी घुलती जाएगी वैसे-वैसे वह धीरे-धीरे ऊपर आता जाएगा। उसी प्रकार ये सब परिणाम निरंतर घुलते ही जाते हैं, और आत्मा ऊपर चढ़ता है। हम जो कुछ भी दख़ल करते हैं, उससे वापस नया उत्पन्न होता है। परमाणुओं की परतें जितनी अधिक होंगी, उतना नीचे की गति में जाएगा और कम परतोंवाला ऊँची गति में जाएगा। और जब परमाणु मात्र का आवरण नहीं रहेगा, तब मोक्ष में जाएगा।
प्रश्नकर्ता : हर एक जीव का अंत में मोक्ष तो है ही। क्योंकि स्वभाव से वह ऊर्ध्वगामी है। तो गुरु बनाने की क्या ज़रूरत है?
दादाश्री : आत्मा का स्वभाव ऊर्ध्वगामी है, लेकिन वह कब? यदि किसीके टच में नहीं आए, तो। इन बुद्धिशालियों के टच में नहीं आए, तो! इन जानवरों के टच में रहेगा, तो ऊर्ध्वगामी ही है। बुद्धि से यह बिगड़ता