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आप्तवाणी-३
बैरबीज में से झगड़ों का उद्भव पहले जो झगड़े किए थे, उनके बैर बँधते हैं और वे आज झगड़े के रूप में चुकाए जाते हैं। झगड़ा हो, उसी घड़ी बैर का बीज पड़ जाता है, वह अगले भव में उगेगा।
प्रश्नकर्ता : तो वह बीज किस तरह से दूर हो?
दादाश्री : धीरे-धीरे समभाव से निकाल करते रहो तो दूर होगा। बहुत भारी बीज पड़ा हो तो देर लगेगी, शांति रखनी पड़ेगी। अपना कुछ भी कोई ले नहीं लेता। खाने का दो टाइम मिलता है, कपड़े मिलते हैं, फिर क्या चाहिए?
भले ही कमरे को ताला लगाकर चला जाए, लेकिन आपको दो टाइम खाने का मिलता है या नहीं मिलता, उतना ही देखना है। आपको बंद करके जाए, फिर भी कुछ नहीं, आप सो जाना। पूर्वभव के बैर ऐसे बँधे हुए होते हैं कि ताले में बंद करके जाता है। बैर और वह भी नासमझी से बँधा हुआ। समझवाला हो तो हम समझ जाएँ कि यह समझवाला है, तब भी हल आ जाए। अब नासमझीवाला हो वहाँ किस तरह हल आए। इसलिए वहाँ बात छोड़ देनी चाहिए।
ज्ञान से, बैरबीज छूटे अब बैर सब छोड़ देने हैं। इसीलिए कभी 'हमारे' पास से स्वरूपज्ञान प्राप्त कर लेना ताकि सभी बैर छूट जाएँ। इसी भव में ही सब बैर छोड़ देने हैं, हम आपको रास्ता दिखाएँगे। संसार में लोग ऊबकर मौत क्यों ढूँढते हैं? ये परेशानियाँ पसंद नहीं हैं, इसलिए। बात तो समझनी पड़ेगी न? कब तक मुश्किल में पड़े रहोगे? यह तो कीड़े-मकोड़ों जैसा जीवन हो गया है। निरी तरफड़ाहट, तरफड़ाहट और तरफड़ाहट। मनुष्य में आने के बाद फिर तरफड़ाट क्यों हो? जो ब्रह्मांड का मालिक कहलाए उसकी यह दशा ! सारा जगत् तरफड़ाहट में है और तरफड़ाहट में न हो तो मूर्छा में होता है। इन दोनों के अलावा बाहर जगत् नहीं है। और तू ज्ञानघन आत्मा हो गया तो दख़ल गया।