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आप्तवाणी-३
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जाने को मिलता है! उसमें भी फिर गद्दी कितनी अच्छी! अरे! खुद के घर पर भी ऐसी नहीं होती! अब इतने अच्छे पुण्य मिले हैं फिर भी भोगना नहीं आता, नहीं तो हिन्दुस्तान के मनुष्य के भाग्य में लाख रुपये की बस कहाँ से हो? यह मोटर में जाते हो तो कहीं धूल उड़ती है? ना। वह तो रास्ते बगैर धूल के हैं। चलो तो पैरों पर भी धूल नहीं चढ़ती। बादशाह के लिए भी उसके समय में रास्ते धूलवाले थे, वह बाहर जाकर आता तो धूल से भर जाता था! और इस की तो बादशाह से भी ज्यादा साहिबी है, परंतु भोगना ही नहीं आता न? यह बस में बैठा हो तब भी अंदर चक्कर चलता रहता है!
संसार सहज ही चले, वहाँ.... कुछ दुःख जैसा है ही नहीं और जो है वे नासमझी के दुःख हैं। इस दुनिया में कितने सारे जीव हैं। असंख्य जीव हैं! परंतु किसी की पुकार नहीं है कि हमारे यहाँ अकाल पड़ा है! और ये मूर्ख हर साल शोर मचाया करते हैं! इस समुद्र में कोई जीव भूखा मर गया हो, ऐसा है? ये कौए वगैरह भूखे मर जाएँ, क्या ऐसा है? ना, वे भूख से नहीं मरनेवाले, वह तो कहीं टकरा गए हों, एक्सिडेन्ट हो गया हो, या फिर आयुष्य पूरा हो गया हो, तब मरते हैं। कोई कौआ आपको दुःखी दिखा है? कोई सूखकर दुबला हो गया हो, ऐसा कौआ देखा है आपने? इन कुत्तों को कभी नींद की गोलियाँ खानी पड़ती हैं? वे तो कितने आराम से सो जाते हैं। ये अभागे ही सोने के लिए बीस-बीस गोलियाँ खाते हैं ! नींद तो कुदरत की भेंट है, नींद में तो सचमुच का आनंद होता है! और ये डॉक्टर तो बेहोश होने की दवाईयाँ देते हैं। गोलियाँ खाकर बेहोश होना, वह तो शराब पीते हैं, उसके जैसा है। कोई ब्लडप्रेशरवाला कौआ देखा है आपने! यह मनुष्य नाम का जीव अकेला ही दुःखी है। इस मनुष्य अकेले को ही कॉलेज की ज़रूरत है।
ये चिड़ियाँ सुंदर घोंसला बनाती हैं, तो उन्हें कौन सिखाने गया था? ये संसार चलाना तो अपने आप ही आ जाए, ऐसा है। हाँ, 'स्वरूपज्ञान' प्राप्त करने के लिए पुरुषार्थ करने की ज़रूरत है। संसार को चलाने के लिए कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है। ये मनुष्य अकेले ही ज़रूरत से