Book Title: Aptavani Shreni 03
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 308
________________ [६] व्यापार, धर्म समेत जीवन किसलिए खर्च हुए? दादाश्री : यह व्यापार किसलिए करते हो? प्रश्नकर्ता : पैसे कमाने के लिए। दादाश्री : पैसा किसके लिए? प्रश्नकर्ता : उसकी खबर नहीं। दादाश्री : यह किसके जैसी बात है? मनुष्य सारा दिन इंजन चलाया करे, लेकिन किसलिए? कुछ नहीं। इंजन को पट्टा नहीं दें, उसके जैसा है। जीवन किसलिए जीना है? केवल कमाने के लिए ही? जीव मात्र सुख को ढूँढता है। सर्व दुःखों से मुक्ति कैसे हो', यह जानने के लिए ही जीना विचारणा करनी, चिंता नहीं । प्रश्नकर्ता : व्यापार की चिंता होती है, बहुत अड़चनें आती हैं। दादाश्री : चिंता होने लगे कि समझना कि कार्य बिगड़नेवाला है। ज़्यादा चिंता नहीं हो तो समझना कि कार्य बिगड़नेवाला नहीं है। चिंता कार्य के लिए अवरोधक है। चिंता से तो व्यापार की मौत आती है। जिसमें चढाव-उतार हो उसका नाम ही व्यापार, पूरण-गलन है वह। पूरण हुआ उसका गलन हुए बगैर रहता ही नहीं। इस पूरण-गलन में अपनी कोई मिल्कियत नहीं है और जो अपनी मिल्कियत है, उसमें से कुछ भी पूरणगलन होता नहीं है, ऐसा साफ व्यवहार है। यह आपके घर में आपके बीवी

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