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आप्तवाणी - ३
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'आप नहीं देनेवाले कौन ?' यह तो मार - ठोककर लें, ऐसे हैं । अरे! कोर्ट में एक बेटे ने वकील से कहा कि, 'मेरे बाप की नाक कटे ऐसा करो तो मैं तुम्हें तीन सौ रुपये ज़्यादा दूँगा ।' बाप बेटे से कहता है कि, ‘तुझे ऐसा जाना होता, तो जन्म होते ही तुझे मार डाला होता!' तब बेटा कहे कि, 'आपने मार नहीं डाला, वही तो आश्चर्य है न!' ऐसा नाटक होनेवाला हो तो किस तरह मारोगे ! ऐसे-ऐसे नाटक अनंत प्रकार के हो चुके हैं, अरे! सुनते ही कान के परदे फट जाएँ । अरे ! इससे भी तरह - तरह का बहुत कुछ जग में हुआ है इसलिए चेतो जगत् से । अब 'खुद के' देश की ओर मुड़ो, 'स्वदेश' में चलो। परदेश में तो भूत ही भूत है । जहाँ जाओ वहाँ।
कुतिया बच्चों को दूध पिलाती है वह ज़रूरी है, वह कोई उपकार नहीं करती। भैंस का बछड़ा दो दिन भैंस का दूध नहीं पीए तो भैंस को बहुत दुःख होता है। यह तो खुद की ग़रज़ से दूध पिलाते हैं | बाप बेटे को बड़ा करता है वह खुद की ग़रज़ से, उसमें नया क्या किया? वह तो फ़र्ज़ है।
बच्चों के साथ 'ग्लास विद केयर'
प्रश्नकर्ता : दादा, घर में बेटे-बेटियाँ सुनते नहीं हैं, मैं हूँ फिर भी कोई असर नहीं होता ।
खूब डाँटता
दादाश्री : यह रेलवे के पार्सल पर लेबल लगाया हुआ आपने देखा है? ‘ग्लास विद केयर', ऐसा होता है न? वैसे ही घर में भी 'ग्लास विद केयर' रखना चाहिए। अब ग्लास हो और उसे आप हथौड़े मारते रहो तो क्या होगा? वैसे ही घर के लोगों को काँच की तरह सँभालना चाहिए । आपको उस बंडल पर चाहे जितनी भी चिढ़ चढ़ी हो, फिर भी उसे नीचे फेंकोगे? तुरन्त पढ़ लोगे कि 'ग्लास विद केयर' ! घर में क्या होता है कि कुछ भी हुआ तो आप तुरंत ही बेटी को कहने लग जाते हो, 'क्यों ये पर्स खो डाला? कहाँ गई थी ? पर्स किस तरह खो गया?' यह आप हथौड़े मारते रहते हो। यह 'ग्लास विद केयर' समझ जाए तो फिर स्वरूपज्ञान नहीं दिया हो, फिर भी समझ जाएगा ।