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आप्तवाणी-३
हैं। मनुष्य को किसीको समझाना नहीं आता। बाप बेटे से कुछ कहें तो बेटा कहेगा कि मुझे आपकी सलाह नहीं सुननी है। तब सलाह देनेवाला कैसा और लेनेवाला कैसा? किस तरह के लोग इकट्ठे हुए हो? ये लोग आपकी बात क्यों नहीं सुनते? सच्ची नहीं है, इसलिए। सच्ची होगी, तो सुनेंगे या नहीं सुनेंगे? ये लोग ऐसा क्यों कहते हैं? आसक्ति के कारण कहते हैं। इस आसक्ति के लिए तो लोग खुद के जन्म बिगाड़ते हैं।
अब, इस भव में तो सँभाल ले सब 'व्यवस्थित' चलाता है, कुछ भी बोलने जैसा नहीं है। 'खुद का' धर्म कर लेने जैसा है। पहले तो ऐसा समझते थे कि 'हम चलाते हैं, इसलिए हमें बुझाना पड़ेगा।' अब तो आपको नहीं चलाना है न? अब तो यह भी लटू और वह भी लटू! छोड़ो न पीड़ा यहीं से। प्याला फूटे, कढ़ी ढुल जाए, पत्नी बच्चे को डाँट रही हो, तब भी आप इस तरह करवट लेकर आराम से बैठ जाना। आप देखोगे तब वे कहेंगी न कि आप देख रहे थे और क्यों नहीं बोले? और न हो तो हाथ में माला लेकर फेरने लगना, तब वह कहेगी कि ये तो माला में है। छोड़ो न! आपको क्या लेनादेना? शमशान में नहीं जाना हो तो किच-किच करो! यानी कि कुछ बोलने जैसा नहीं है। यह तो गायें-भैंसें भी उनके बच्चों के साथ उनके तरीके से भों-भों करते हैं, अधिक नहीं बोलते! और ये मनुष्य तो ठेठ तक बोलते ही रहते हैं। जो बोले, वह मूर्ख कहलाता है, सारे घर को खत्म कर डालता है। उसका कब अंत आएगा? अनंत जन्मों से संसार में भटके हैं। न किसी का भला किया, न खुद का भला किया। जो मनुष्य खुद का भला करे वही दूसरों का भला कर सकता है।
सच्ची सगाई या पराई पीड़ा? बेटा बीमार हो तो आप इलाज सब करना, लेकिन सबकुछ उपलक अपने बच्चों को कैसे मानने चाहिए? सौतेले। बच्चों को मेरे बच्चे कहा और बच्चा भी मेरी माँ कहता है, लेकिन अंदर लम्बा संबंध नहीं है। इसीलिए इस काल में सौतेले संबंध रखना, नहीं तो मारे गए समझो। बच्चे किसीको मोक्ष में ले जानेवाले नहीं है। यदि आप समझदार होंगे, तो बच्चे समझदार