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आप्तवाणी-३
जाता है कि जो कृष्ण भगवान को था। संपूर्ण भीख जाने के बाद ही जगत् 'जैसा है वैसा' दिखता है।
आत्मज्ञान हो जाए, तब खुद ब्रह्मांड का स्वामी बन जाता है ! तब तक भक्त कहलाता है। आत्मज्ञान होने के बाद खुद भक्त भी है और भगवान भी है। फिर खुद, खुद की ही भक्ति करता है।
सत्-असत् का विवेक, ज्ञानी की भाषा में सत् और असत् का संपूर्ण विवेक तो 'ज्ञानीपुरुष' को ही होता है। जगत् असत् को सत् मानता है। यह सत् ऐसा है और असत् ऐसा है', ऐसा जानना, उसे सम्यक् दर्शन कहा है। कुछ लोग स्थूल असत् को सत् कहते हैं। कुछ लोग सूक्ष्म असत् को सत कहते हैं। कुछ लोग सूक्ष्मतर असत् को सत् कहते हैं। कुछ लोग सूक्ष्मतम असत् को सत् कहते हैं। संपूर्ण असत् को जो जानता है, वह सत् को जानता है। संपूर्ण अज्ञान को जान ले, तो उसके उस पार ज्ञान है। कंकड़ को पहचानना आ गया तो गेहूँ को जाना जा सकता है अथवा गेहूँ को जान ले तो कंकड़ को जाना जा सकता है।
अवस्थाएँ असत् हैं, नाशवंत हैं। आत्मा सत् है, अविनाशी है। अविनाशी को विनाशी की चिंता नहीं करनी होती।
आत्मानुभव किसे हुआ? प्रश्नकर्ता : आत्मानुभव किसे होता है? अनुभव करनेवाला कौन है?
दादाश्री : 'खुद' को ही होता है। अज्ञान से जो भ्रांति खड़ी हुई थी, वह चली जाती है और अस्तित्वपन वापस ठिकाने पर आ जाता है। 'मैं चंदूभाई हूँ' ऐसा 'जिसे' भान था, उसे उसका वह भान मैं छुड़वा देता हूँ और उसीको 'मैं शुद्धात्मा हूँ' का भान होता है। जो सूक्ष्मतम अहंकार है कि जिसका फोटो नहीं लिया जा सकता, जो आकाश जैसा है, उसे अनुभव होता है। मैं चंदूभाई हूँ', वह स्थूल अहंकार छूट गया, फिर सूक्ष्म, सूक्ष्मतर और अंत में सूक्ष्मतम अहंकार रहता है। सूक्ष्मतम अहंकार को