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आप्तवाणी - ३
जिस वाद पर विवाद नहीं हो, वह सच्चा ज्ञान कहलाता है । और वाद पर विवाद हो, संवाद हो, प्रतिवाद हो, ज़बानदराज़ी हो, वहाँ पर सच्चा ज्ञान नहीं होता।
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ज्ञान दो प्रकार के हैं- एक वह कि संसार में क्या सही और क्या गलत है, क्या अहितकारी है और क्या हितकारी है और दूसरा मोक्षमार्ग का ज्ञान। उसमें यदि मोक्षमार्ग का ज्ञान प्राप्त हो जाए तो संसार का ज्ञान तो सहज ही उत्पन्न हो जाएगा क्योंकि उसे दृष्टि मिली है न! दिव्यदृष्टि मिली! मोक्षमार्ग का ज्ञान नहीं मिले तो संसार के हिताहित का ज्ञान देनेवाले संत मिलने चाहिए। इस काल में ऐसे संत दुर्लभ होते हैं।
वज्रलेपम् भविष्यति
प्रश्नकर्ता : लोग भगवान को धोखा देकर धर्म में भ्रष्टाचार करते हैं।
दादाश्री : वह बहुत गलत कहलाता है । इसलिए तो पहले से ही पहले के ज्ञानियों ने श्लोक कहा है
अन्य क्षेत्रे कृतम् पापम्, धर्मक्षेत्रे विनश्यति,
धर्मक्षेत्रे कृतम् पापम्, वज्रलेपम् भविष्यति।
वज्रलेप अर्थात् लाखों वर्षों के लिए खत्म हो जाए ! नर्क मिलता है! जो खुद का ही अहित कर रहे हैं, उन्हें हम ऐसा कहते हैं कि ‘जागते हुए सो रहे हैं।' इससे तो मनुष्यपन चला जाएगा, दुःख के पहाड़ खड़े कर रहे हैं। इसे सिर्फ ज्ञान ही रोक सकता है। सत्यज्ञान मिलना चाहिए। सिर्फ पछतावा करने कुछ नहीं होगा। पछतावा तो धर्म की एक शुरूआत की एक सीढ़ी है।
से
प्रश्नकर्ता : गलत काम करता है और पछतावा करता है, फिर वापस वही चलता रहता है न?
दादाश्री : पछतावा हार्टिली होना चाहिए।
उल्टा ज्ञान मिलता है, उसमें से तृष्णाएँ उत्पन्न होती हैं और उल्टे ज्ञान की आराधना के फल स्वरूप दुःख आता है। बाकी, कुदरत किसीको