Book Title: Aptavani Shreni 03
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 282
________________ आप्तवाणी-३ २३३ अहो! व्यवहार का मतलब ही... प्रश्नकर्ता : प्रकृति न सुधरे, परंतु व्यवहार तो सुधरना चाहिए न? दादाश्री : व्यवहार तो लोगों को आता ही नहीं। व्यवहार कभी आया होता न, अरे, आधे घंटे के लिए भी आया होता तो भी बहुत हो गया! व्यवहार तो समझे ही नहीं हैं। व्यवहार मतलब क्या? उपलक (सतही, ऊपर ऊपर से, सुपरफ्लुअस)! व्यवहार का मतलब सत्य नहीं है। यह तो व्यवहार को सत्य ही मान लिया है। व्यवहार में सत्य मतलब रिलेटिव सत्य। यहाँ के नोट सच्चे हों या झूठे हों दोनों 'वहाँ' के स्टेशन पर काम नहीं आते। इसलिए छोड़ न इसे, और 'अपना' काम निकाल ले। व्यवहार मतलब दिया हुआ वापस करना, वह। अभी कोई कहे कि, 'चंदूलाल में अक्ल नहीं है।' तो आप समझ जाना कि यह दिया हुआ वापस आया! यदि यह जो समझोगे तो वह व्यवहार कहलाएगा। आजकल व्यवहार किसी में है ही नहीं। जिसके लिए व्यवहार, व्यवहार है; उसका निश्चय, निश्चय है। ...और सम्यक् कहने से कलह शम जाता है प्रश्नकर्ता : किसी ने जान-बूझकर यह वस्तु फेंक दी, तो वहाँ पर क्या एडजस्टमेन्ट लेना चाहिए? दादाश्री : यह तो फेंक दिया, लेकिन बच्चा फेंक दे तब भी आपको 'देखते' रहना है। बाप बच्चे को फेंक दे तो आपको देखते रहना है। तब क्या आपको पति को फेंक देना चाहिए? एक को तो अस्पताल जाना पड़ा, अब वापस दो अस्पताल खड़े करने हैं? और फिर जब उसका चलेगा तब वह हमें पछाड़ देगा, फिर तीन अस्पताल खड़े हो जाएँगे। प्रश्नकर्ता : तो फिर कुछ कहना ही नहीं चाहिए? दादाश्री : कहो, लेकिन सम्यक् कहना, यदि बोलना आए तो। नहीं तो कुत्ते की तरह भौंकते रहने का अर्थ क्या? इसलिए सम्यक् कहना चाहिए। प्रश्नकर्ता : सम्यक् मतलब किस तरह का?

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