________________
आप्तवाणी-३
१२४
मंद
और वीतरागता में राग- -द्वेष ही नहीं होते। उदासीनता में पहले सभी वृत्तियाँ पड़ जाती है, फिर वीतरागता उतपन्न होती है । उदासीनता अर्थात् रुचि भी नहीं होती और अरुचि भी नहीं होती ।
प्रश्नकर्ता : बाहर कहीं भी उल्लास महसूस नहीं हो और अंदर राग-द्वेष नहीं हों, तो वह क्या कहलाता है ?
दादाश्री : उदासीनता में अंदर उल्लास होता है और बाहर उल्लास नहीं दिखता; जब कि वीतरागता में अंदर बाहर सब तरफ उल्लास होता है ।