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आप्तवाणी - ३
हैं। वे पूरे ब्रह्मांड का वर्णन कर सकते हैं। सभी जवाब दे सकते हैं । चाहे कुछ भी पूछे, खुदा का पूछे, क्राइस्ट का पूछे, कृष्ण का पूछे या महावीर का पूछे, तो भी 'ज्ञानी' उसके जवाब दे सकते हैं । इस 'अक्रम विज्ञान' के माध्यम से आपको भी आत्मानुभव ही प्राप्त हुआ है। लेकिन वह आपको आसानी से प्राप्त हो गया है, इसलिए आपको खुद को लाभ होता है, प्रगति की जा सकती है। विशेष रूप से 'ज्ञानी' के परिचय में रहकर समझ लेना है। करना कुछ भी नहीं है । क्रमिक मार्ग में तो कितना अधिक प्रयत्न करने पर आत्मा ख़्याल में आता है, वह भी बहुत अस्पष्ट और लक्ष्य तो बैठता ही नहीं। उसे लक्ष्य में रखना पड़ता है कि आत्मा ऐसा है । और आपको तो अक्रम मार्ग में सीधा आत्मानुभव ही हो जाता है ।
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जो साक्षात् हुआ, वही 'ज्ञान'
दादाश्री : शुद्धात्मा का लक्ष्य रहता है आपको।
प्रश्नकर्ता : हाँ जी ।
दादाश्री : कितने समय तक रहता है ?
प्रश्नकर्ता : निरंतर । आपने ज्ञान दिया तब से ही निरंतर रहता है ।
दादाश्री : आत्मानुभव के बिना लक्ष्य रह ही नहीं सकता। नींद में से जागो तो तुरन्त लक्ष्य आ जाता है न?
प्रश्नकर्ता : हाँ, तुरन्त ही । अपने आप ही, आँख खुलते ही सबसे पहले 'मैं शुद्धात्मा हूँ', लक्ष्य में आ जाता है।
दादाश्री : इसीको साक्षात्कार कहते हैं, इसे ज्ञान कहते हैं । और जो ज्ञान साक्षात् नहीं होता, उसे अज्ञान कहते हैं ।
आत्मा की प्रतीति बैठनी ही बहुत मुश्किल है तो लक्ष्य और अनुभव की तो बात ही क्या करनी ? आत्मा की प्रतीति अर्थात् निःशंकता, 'यही आत्मा है' ऐसा पक्का पता चल जाना, वह । ऐसा हम आपको करवा देते हैं । इसीलिए तो अंदर आपके भीतर मन-बुद्धि- चित्त - अहंकार सब नि:शंक हो जाते हैं।