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[८] सूझ, उदासीनता
सूझ, समसरण मार्ग की देन प्रश्नकर्ता : सूझ का मतलब क्या है? इसे प्रेरणा कहते हैं?
दादाश्री : प्रेरक, वह डिस्चार्ज है। अंदर एकदम लाइट कर देती है और उससे प्रेरणा होती है। वह जो लाइट होती है, वह सूझ है। सूझ तो अविरत प्रवाह है, लेकिन उस पर आवरण आ गए हैं इसलिए दिखता नहीं है, इसलिए कोई सूझ नहीं पड़ती। अतः लोग ज़रा सिर खुजलाते हैं तो अंदर लाइट होती है और सूझ पड़ जाती है। यह सिर खुजलाते हैं तब क्या होता है, वह पता है?
प्रश्नकर्ता : नहीं, दादा।
दादाश्री : जो चित्त वृत्तियाँ इधर-उधर खिंची हुई हों, वे सिर खुजलाने से ज़रा एकाग्र हो जाती हैं। एकाग्रता हुई कि अंदर एकदम सूझ पड़ जाती है।
सूझ पड़ती है, जगत् उसे पुरुषार्थ कहता है। वास्तव में यह पुरुषार्थ है ही नहीं। सूझ तो कुदरती बख़्शीश है।
हर एक को सूझ होती है। उसकी सूझ पर से हमें मालूम हो जाता है कि यह समसरण मार्ग के प्रवाह में कितने मील पर है। छह महीनों पहले की और अभी की सूझ में फर्क पड़ चुका होता है, बढ़ गई हो तो समझ में आता है कि वह कौन-से मील पर पहुँचा है। इस दुनिया में देखने जैसी वही एक वस्तु है। इन मनुष्यों के शरीर में सिर्फ सूझ ही डिस्चार्ज नहीं है, बाकी का सभीकुछ डिस्चार्ज है। सूझ खुद चार्ज नहीं