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अज्ञाशक्ति : प्रज्ञाशक्ति बंधन, अज्ञा से : मुक्ति, प्रज्ञा से
सिर्फ एक अज्ञाशक्ति से इस जगत् की अधिकरण क्रिया चलती रहती है। ठेठ मोक्ष में जाने तक यह अज्ञाशक्ति मंद हो ऐसी नहीं है। 'क्रमिक मार्ग' में अंतिम स्टेशन पर जब अज्ञाशक्ति विदाई लेती है, तब प्रज्ञाशक्ति हाज़िर हो जाती है, और यहाँ पर इस 'अक्रम मार्ग' में जब हम ज्ञान देते हैं, तब पहले प्रज्ञाशक्ति उत्पन्न हो जाती है और अज्ञाशक्ति विदाई ले लेती है। यह प्रज्ञाशक्ति ही आपको मोक्ष में ले जाएगी। इसमें आत्मा तो वही का वही है । वहाँ पर भी वीतराग है और यहाँ पर भी वीतराग है । मात्र ये शक्तियाँ ही सब कार्य करती रहती हैं ।
अज्ञाशक्ति किस तरह से उत्पन्न होती है ? आत्मा पर संयोगों का ज़बरदस्त दबाव आ गया, इसलिए फिर, जो ज्ञान - दर्शन स्वाभाविक था, वह विभाविक हो गया, उससे अज्ञाशक्ति उत्पन्न हो गई । यह अज्ञाशक्ति मूल आत्मा की कल्पशक्ति में से उत्पन्न होती है । जैसी कल्पना करे, वैसा हो जाता है। फिर अहंकार साथ में ही रहता है इसलिए फिर आगे बढ़ता है... एक ही जगह ऐसी है कि जहाँ पर संयोग नहीं हैं, और वह है सिद्ध गति! अतः वहीं पर समसरण मार्ग का अंत आता है।
जब 'ज्ञानीपुरुष' मिल जाते हैं, तब प्रज्ञादेवी हाज़िर हो जाती हैं । अज्ञादेवी संसार से बाहर निकलने नहीं देती, और प्रज्ञादेवी संसार में घुसने नहीं देती। इन दोनों का झगड़ा चलता रहता है ! दोनों में से जिसका बल अधिक होता है, वह जीत जाती है । 'हम' 'शुद्धात्मा' हुए यानी प्रज्ञादेवी के पक्षकार हो गए और इसीलिए उसकी जीत होगी ही ।