Book Title: Aptavani Shreni 03
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 294
________________ आप्तवाणी-३ I और फिर मुँह धोकर बाहर निकलता है !! हम पूछें, 'कैसे हो चंदूभाई ?' तब वह कहे, ‘बहुत अच्छा हूँ।' अरे, तेरी आँख में तो पानी है, मुँह धोकर आया है । लेकिन आँख तो लाल दिखती है न? इसके बजाय तो कह डाल न कि मेरे यहाँ यह दुःख है। ये तो सभी ऐसा समझते हैं कि दूसरे के वहाँ दुःख नहीं है। मेरे यहाँ ही दुःख है । ना, अरे सभी रोए हैं। हर कोई घर से रोकर मुँह धोकर बाहर निकले हैं। यह भी एक आश्चर्य है! मुँह धोकर क्यों निकलते हो? धोए बगैर निकलो तो लोगों को पता चले कि इस संसार में कितना सुख है ! मैं रोता हुआ बाहर निकलूँ, तू रोता हुआ बाहर निकले, सभी रोते हुए बाहर निकलें तब फिर पता चल जाएगा कि यह जगत् पोल ही है। छोटी उम्र में पिताजी मर गए तो शमशान में रोतेरोते गए ! वापस आकर नहाए, फिर कुछ भी नहीं !! नहाने का इन लोगों ने सिखलाया। नहला-धुलाकर चोखा कर देते हैं! ऐसा यह जगत् है ! सभी मुँह धोकर बाहर निकले हुए हैं, सब पक्के ठग । उसके बदले तो खुला किया होता तो अच्छा। २४५ हमारे ‘महात्माओं' में से कुछ महात्मा खुला कर देते हैं कि 'दादा, आज तो पत्नी ने मुझे मारा।' इतनी अधिक सरलता किस कारण से आई? अपने ज्ञान के कारण आई । 'दादा' को तो सारी ही बातें कही जा सकती हैं। ऐसी सरलता आई, वहीं से ही मोक्ष जाने की निशानी हुई। ऐसी सरलता होती नहीं है न? मोक्ष में जाने के लिए सरल ही होना है । यह बाहर तो पति छीट्-छीट् किया करता है । पत्नी की मार खुद खा रहा हो, फिर भी बाहर कहता है कि, 'ना, ना, वह तो मेरी बेटी को मार रही थी ! ' अरे, मैंने खुद तुझे मार खाते हुए देखा था न ? उसका क्या अर्थ? मीनिंगलेस । इससे तो सच सच कह दे न! आत्मा को कहाँ मारनेवाली है ? हम आत्मा हैं, मारेगी तो देह को मारेगी। अपने आत्मा का तो कोई अपमान ही नहीं कर सकता। क्योंकि 'आपको' वह देखेगी तो अपमान करेगी न? देखे बिना किस तरह अपमान करेगी? देह को तो यह भैंस नहीं मार जाती ? वहाँ नहीं कहते कि इस भैंस ने मुझे मारा? उस भैंस से तो घर की पत्नी बड़ी नहीं है? उसमें क्या? किस की आबरू जानेवाली है? आबरू है ही कहाँ ? इस जगत् में कितने जीव रहते हैं? कोई कपड़े पहनता है? आबरूवाले कपड़े पहनते ही नहीं। जिसकी आबरू नहीं है, वे कपड़े पहनकर आबरू

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