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आप्तवाणी-३
मिश्रसा हो जाने के बाद में किसीका नहीं चलता, फिर उसे भोगना ही पड़ता है।
विभाविक पुद्गल से जग ऐसा दिखे आत्मा से जिस-जिस पुद्गल का स्पर्श हुआ, वह विभाविक हुआ कहलाएगा। देहधारी मात्र में साथ-साथ होते हैं जब कि स्वाभाविक पुद्गल की अवस्थाएँ बदलती रहती है। यह देह अनंत परमाणुओं से बनी हुई है, लेकिन वे विभाविक परमाणुओं की है। जब कि बाहर जो अन्य सब परमाणु हैं, वे स्वाभाविक परमाणु हैं।
जो मूल स्वभाविक पुद्गल है, वह परमानेन्ट है। यह विभाविक पुद्गल टेम्परेरी है। जो विशेष भाव से परिणामित हुआ है, वह टेम्परेरी है। मूल स्वभाववाला पुद्गल परमाणु स्वरूप से है, वह परमानेन्ट है।
प्रश्नकर्ता : विशेष भाव से किसलिए परिणामित होता है?
दादाश्री : आत्मा को यह सब मिलने से। 'सामीप्य भाव' उत्पन्न होने से विशेष भाव उत्पन्न होता है। और उससे पुद्गल में भी विशेष भाव उत्पन्न हुआ है। असल पुद्गल तो परमाणु के रूप में होता है, अर्थात् स्कंधरूप से होता है लेकिन वह 'रियल' है। जब कि विशेष भाव यानी कि इसमें मिक्स्चर भाव है।
प्रश्नकर्ता : कौन-से कारण से स्त्री को स्त्री-देह और पुरुष को पुरुष-देह मिलती है।
दादाश्री : यह बॉडी क्रोध-मान-माया-लोभ के परमाणुओं से ही बनी हुई है। पुरुष की देह में मान और क्रोध के परमाण अधिक होते हैं और स्त्री की देह में कपट और लोभ के परमाणु अधिक होते हैं। किसी पुरुष में जब कपट और मोह के परमाणु बढ़ जाते हैं तो वह अगले जन्म में स्त्री बनता है। और यदि स्त्री के कपट और लोभ कम हो जाएँ और क्रोध और मान बढ़ जाएँ तो वह दूसरे जन्म में पुरुष बनती है। स्त्री हमेशा के लिए स्त्री नहीं है। आत्मा, आत्मा है और परमाणु सारे बदलते रहते हैं।