________________
आप्तवाणी-३
१६५
दख़ल नहीं, ‘एडजस्ट' होने जैसा है ___ संसार का मतलब ही समसरण मार्ग, इसलिए निरंतर परिवर्तन होता ही रहता है। जब कि ये बड़े-बूढ़े पुराने जमाने को ही पकड़े रहते हैं। अरे! ज़माने के अनुसार कर, नहीं तो मार खाकर मर जाएगा। ज़माने के अनुसार एडजस्टमेन्ट लेना चाहिए। मेरा तो चोर के साथ, जेब काटनेवाले के साथ, सबके साथ एडजस्टमेन्ट हो जाता है। चोर के साथ हम बात करें तो वह भी समझ जाता है कि ये करुणावाले हैं। हम चोर को 'तू गलत है' ऐसा नहीं कहते, क्योंकि वह उसका 'व्यू पोइन्ट' है। जब कि लोग उसे नालायक कहकर गालियाँ देते हैं। तब ये वकील क्या झठे नहीं है? 'बिल्कुल झूठा केस भी जिता दूँगा', ऐसा कहते हैं, तो वे ठग नहीं कहलाएँगे? चोर को बुरा कहते हैं न, इस बिल्कुल झूठे केस को सच्चा कहता है, उसका संसार में विश्वास किस तरह किया जाए? फिर भी उसका चलता है न? किसीको हम गलत नहीं कहते। वह उसके व्यू पोइन्ट से करेक्ट ही है। लेकिन उसे सच्ची बात समझाते हैं कि तू यह चोरी करता है, उसका फल क्या आएगा।
ये बूढ़े लोग घर में आएँ तो कहते हैं, 'यह लोहे की अलमारी? यह रेडियो? यह ऐसा क्यों है? वैसा क्यों है?' ऐसे दख़ल करते हैं। अरे, किसी युवक से दोस्ती कर। यह युग तो बदलता ही रहेगा। उसके बिना ये जिएँगे किस तरह? कुछ नया देखें, तो मोह होता है। नया नहीं हो तो जिएँगे ही कैसे? ऐसा नया अनंत आया और गया, उसमें आपको दख़ल नहीं करनी है। आपको ठीक नहीं लगे तो आप वह मत करना। यह आइस्क्रीम ऐसा नहीं कहती आप से कि 'हमसे भागो। हमें नहीं खाना हो तो नहीं खाओ।' यह तो बूढ़े लोग उन पर चिढ़ते रहते हैं। ये मतभेद तो ज़माना बदला उसके हैं। ये बच्चे तो ज़माने के अनुसार करते हैं। मोह यानी नया-नया उत्पन्न होता है और नया ही नया दिखता है। हमने बचपन से ही बुद्धि से बहुत सोच लिया है कि यह जगत् उल्टा हो रहा है या सीधा हो रहा है, और यह भी समझा कि किसीको सत्ता ही नहीं है इस जगत् को बदलने की। फिर भी हम क्या कहते हैं कि ज़माने के अनुसार एडजस्ट हो जाओ! बेटा नयी ही टोपी पहनकर आए तो ऐसा नहीं कहना कि ऐसी