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आप्तवाणी-३
आत्मा : सर्वव्यापक प्रश्नकर्ता : आत्मा तो सर्वव्यापक है न?
दादाश्री : प्रमेय के अनुसार प्रमाता ! प्रमेय अर्थात् भाजन। घड़े में लाइट रखो तो पूरे रूम में फैल जाती है, और रूम से बाहर रखेंगे तो उससे भी अधिक लाइट फैल जाएगी। आत्मा ज्ञानभाव से जब देह से मुक्त हो जाता है, तब वह सर्वव्यापक पूरे ब्रह्मांड में व्याप्त हो जाता है, और यदि अज्ञानभाव से प्रकाशमान हो, तो कुछ ही भाग को प्रकाशमान कर सकता है।
आत्मा : एक स्वभावी प्रश्नकर्ता : आत्मा तो सभीका एक ही है या अलग-अलग है?
दादाश्री : रामचंद्र जी मोक्ष में गए, वहाँ उनका आत्मा तो है या नहीं?
प्रश्नकर्ता : है। यहाँ रखकर तो नहीं जाएँगे न।
दादाश्री : हं.... अब रामचंद्र जी मोक्ष का सुख भोग रहे हैं और यहाँ पर कितने ही लोग अंतहीन वेदनाएँ भोग रहे हैं। आत्मा यदि एक ही होता तो एक को सुख हो तो सभी को सुख होना चाहिए, एक मोक्ष में जाए तो सभी को मोक्ष में जाना चाहिए। अतः आत्मा एक नहीं है, लेकिन एक स्वभाववाला है। जिस प्रकार यहाँ पर २४ केरेट के सोने की एक लाख सिल्लियाँ हों और उन्हें गिनना हो तो एक लाख होंगी, लेकिन अंत में वह कहलाता क्या है?
प्रश्नकर्ता : सोना।
दादाश्री : उसी प्रकार से आत्मा की गिनती करनी हो तो अलगअलग गिने जा सकते हैं, लेकिन अंत में यह चेतन, वही भगवान है। देहरहित स्थिति को परमात्मा कहते हैं।
प्रश्नकर्ता : तो फिर आत्मा में से ही परमात्मा बनते हैं, ऐसा है?