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आप्तवाणी-३
पूरे ब्रह्मांड को प्रकाशित करने की शक्ति आत्मा में है। उसकी खुद की पूरे ब्रह्मांड को प्रकाशित करने की जो स्वसंवेदन शक्ति है, उसे केवलज्ञान कहते हैं।
प्रश्नकर्ता : खुद के गुणधर्म, अनंत ज्ञान-अनंत दर्शन, उसका ध्यान करें तो वह प्राप्त हो जाएँगे?
दादाश्री : होंगे, अवश्य होंगे। आत्मा के जितने गुणों को जाना, उतने गुणों का ध्यान करे तो आत्मा के उतने प्रदेश खुलते जाएँगे, वैसे-वैसे ज्ञान प्रकाशित होगा और वैसे-वैसे आनंद बढ़ता जाएगा।
महावीर भगवान को तीन वस्तुओं का ज्ञान थाः १) एक परमाणु को देख सकते थे। २) एक समय को देख सकते थे। ३) एक प्रदेश को देख सकते थे। ऐसा तो वीतरागों का विज्ञान हैं!
आत्मा : वेदक? निर्वेदक? प्रश्नकर्ता : जब दाढ़ दुखती हैं तब हम कहते हैं कि, 'दाढ़ मेरी नहीं है, लेकिन वहीं पर ध्यान जाता है, वह क्या है?
दादाश्री : 'मेरी दाढ़ दुःख रही है', बोलने से उसे ज़बरदस्त इफेक्ट होता है, दु:ख १२५ प्रतिशत हो जाता है और दूसरा व्यक्ति दाढ़ दु:खने के बावजूद भी मौन रहे तो उसे सौ प्रतिशत वेदना होती है। और कोई यदि अहंकार से बोले कि, 'ऐसी तो बहुत बार दाढ़ दुःखती है', तो दुःख पचास प्रतिशत हो जाता है।
वेदना का स्वभाव कैसा है? यदि उसे पराई जाने तो वह जानता रहेगा, वेदेगा नहीं। यह मुझे हुआ है' ऐसा हुआ तो वेदेगा, और यह सहन नहीं होता' बोले तो दस गुना हो जाएगा। यदि एक पैर टूट रहा हो तो दूसरे से कहना कि 'तू भी टूट!'