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आप्तवाणी-३
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संपूर्ण निरावृत हो जाएगा, तब संपूर्ण व्यक्त हो जाएगा! फिर मेरी तरह आपको भी आनंद जाएगा ही नहीं। आप कहो कि 'जा, यहाँ से', तो भी वह नहीं जाएगा।
प्रश्नकर्ता : 'एब्सोल्यूट नॉलेज' की डेफिनेशन दें सकेंगे? दादाश्री : 'आम मीठा लगता है' यह ज्ञान है न? या अज्ञान है? प्रश्नकर्ता : ज्ञान है।
दादाश्री : यह ज्ञान है, लेकिन उससे क्या मुहँ मीठा हो जाएगा? यानी की जिस ज्ञान से मुहँ मीठा नहीं हो, वह एब्सोल्यूट नहीं कहलाएगा। जिस ज्ञान से सुख ही बर्ते, उसे एब्सोल्यूट कहते हैं। जब 'मैं शुद्धात्मा हूँ' वह ज्ञान एब्सोल्यूट हो जाएगा, तब बाहर की वळगण (बला, पाश) छूट जाएगी, सर्व अंतराय टूट जाएँगे और निरंतर खुद का परमानंद स्वरूप रहेगा।
एब्सोल्यूट के अलावा अन्य जो भी ज्ञान है, वह आनंद नहीं देता, वह तो मार्गदर्शन करता है कि आम मीठा है। जैसे बोर्ड लगाते हैं कि 'मुंबई जाने का रास्ता'-उसी तरह का है। सिर्फ कहते हैं कि 'तू शादी करेगा तो सुखी हो जाएगा' उससे क्या सुखी हो गया? नहीं, जब कि एब्सोल्यूट ज्ञान में तो उसी रूप हो जाता है।
केवलज्ञान स्वरूप उसीको कहा जाता है कि जहाँ पर पुद्गल परिणती बंद हो जाए। सर्वथा निज परिणती को केवलज्ञान कहा जाता है। केवलदर्शन में निज परिणती उत्पन्न होती है। निज परिणती संपूर्ण हो जाए तो, उसे केवलज्ञान कहा जाता है। केवलदर्शन में निज परिणती उत्पन्न होती है और केवलज्ञान में संपूर्ण हो जाती है। निज परिणती उत्पन्न होने के बाद क्रम पूर्वक बढ़ती रहती है और केवलज्ञान स्वरूप में परिणामित होती है। निज परिणति, वह आत्मभावना है, 'मैं शुद्धात्मा हूँ', वह आत्मभावना नहीं है।
जब तक केवलज्ञान नहीं होता, तब तक अंदर के ज्ञेय देखने हैं, उसके बाद ब्रह्मांड के ज्ञेय झलकेंगे। इस काल में कुछ ही अंशों तक ज्ञेय और द्रश्य झलकते हैं।