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आप्तवाणी-३
भगवान ऐसे हठाग्रही नहीं थे । भगवान को तो समझना मुश्किल है । लोग अपनी-अपनी भाषा में ले जाते हैं बात को ।
प्रश्नकर्ता : यथाख्यात चारित्र, वही केवलज्ञान है ?
दादाश्री : यथाख्यात चारित्र पूरा हो जाए, उसके बाद में फिर केवलज्ञान होता है। यथाख्यात के बाद में केवलचारित्र है । केवलज्ञान कब होता है? अंतिम जन्म के अंतिम दस-पंद्रह वर्ष या अंत में पाँच वर्षों में भी कोई रिश्ते, व्यवहारिक अथवा नाटकीय कुछ भी नहीं रहें, तब । भगवान महावीर के भी नाटकीय रिश्ते कब गए? भगवानने तो विवाह किया था, बेटी थी, फिर भी नाटकीय रूप से घर में रहते थे । तीसवें वर्ष में वह भी छूट गया। अनार्य देश में विचरे तब केवलज्ञान उपजा । सिद्धांत क्या कहता है कि ‘केवलज्ञान' होने से पहले कुछ वर्ष 'कोरे' होने चाहिए। वह नियम से ही उदय में आता है, उसके लिए त्याग की ज़रूरत नहीं है।
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गजसुकुमार को भगवान नेमिनाथ से शुद्धात्मा पद प्राप्त हुआ था। गजसुकुमार की ब्राह्मण कन्या के साथ सगाई हुई थी। बाद में तो उन्हें वैराग्य हो गया था, इसलिए दीक्षा ली। अब सोमेश्वर ब्राह्मण के मन में बैर उत्पन्न हुआ कि मेरी बेटी को दर-दर की ठोकरें खिला दी। एक दिन जंगल में तालाब के किनारे गजसुकुमार शुद्धात्मा का ध्यान कर रहे थे । पद्मासन लगाकर बैठे थे। उन्हें तो क्रमिक मार्ग में पद्मासन लगाना पड़ता था। अपने यहाँ पद्मासन लगाकर बैठे हों, तो पंद्रह मिनट में मुझे खोलने पड़ेंगे पैर। इसलिए हम तो कहते हैं, 'तुझे जैसे ठीक लगे वैसे बैठ।' यह तो अक्रमज्ञान हैं! अब गजसुकुमार ध्यान में बैठे थे और वहाँ से उस समय सोमेश्वर ब्राह्मण गुज़रा। उसने गजसुकुमार को देखा तो अंदर बैर भभक उठा, क्रोध से भरकर उन्होंने जमाई के माथे पर मिट्टी की सिगड़ी बनाई और अंदर अंगारे जलाए। तब गजसुकुमारने देख लिया था कि 'ओहोहो! आज तो ससुरजी मोक्ष की पगड़ी बाँध रहे हैं !' तब उन्होंने क्या किया?
भगवान ने उन्हें समझाया था कि " बड़ा उपसर्ग आ पड़े, तब 'शुद्धात्मा - शुद्धात्मा' मत करना । शुद्धात्मा तो स्थूल स्वरूप है, शब्द रूप है, तब तो सूक्ष्म स्वरूप में चले जाना।" उन्होंने पूछा, 'सूक्ष्म स्वरूप क्या है?"