________________
आप्तवाणी-३
जिस प्रकार इन दवाईयों के लिए डॉक्टर की ज़रूरत पड़ती है या नहीं पड़ती? या फिर आप खुद घर पर दवाईयाँ बना लेते हो? वहाँ पर कैसे जागृत रहते हो कि कुछ भूल हो जाएगी तो मर जाऊँगा! और यह आत्मा संबंधी तो खुद ही मि बना लेता है! शास्त्र खुद की ही अक्ल से, गुरुगम के बिना पढ़कर और मिक्स्च र बनाकर पी गए। इसे भगवान ने स्वच्छंद कहा है। इस स्वच्छंद से तो अनंत जन्मों का मरण हो गया! दवाई से तो एक ही जन्म का मरण था!!!
लोग टेम्परेरी आत्मा को आत्मा मानते हैं। पीतल को सोना मानकर सँभालकर रखते हैं और जब बेचने जाएँ तो चार आने भी नहीं मिलें! यह तो 'ज्ञानीपुरुष' ही कहें कि, ‘फेंक दे न! यह सोना नहीं है, पीतल है बफिंग किया हुआ।' तब फिर सोना तो कब कहलाएगा? कि जब वह अपने गुणधर्म सहित हो, तब।
सोना, तांबा इनका मिक्स्चर हो गया हो और उसमें से यदि शुद्ध सोना निकालना हो तो उसका विभाजन करना पड़ेगा। सोना, तांबा, उन सभी के गुणधर्मों को जान लेगा, तभी उनका विभाजन किया जा सकेगा। उसी प्रकार आत्मा और अनात्मा के गुणों को जानना पड़ता है, उसके बाद ही उनका विभाजन हो सकता है। उनके गुणधर्मों को कौन जान सकता है? वह तो 'ज्ञानीपुरुष' ही कि जो वर्ल्ड के ग्रेटेस्ट साइन्टिस्ट हैं, वे ही जान सकते हैं, और वे ही दोनों को अलग कर सकते हैं। वे आत्मा-अनात्मा का विभाजन कर देते हैं इतना ही नहीं, लेकिन आपके पापों को जलाकर भस्मीभूत कर देते हैं, दिव्यचक्षु देते हैं और 'यह जगत् क्या है? किस तरह से चल रहा है? कौन चलाता है?' वगैरह सभी स्पष्ट कर देते हैं, तब जाकर अपना पूर्ण काम होता है।
आत्मज्ञान दिया जा सके या लिया जा सके, ऐसी चीज़ नहीं है। लेकिन यह तो 'अक्रम विज्ञान' है और यह आश्चर्य है, इसीलिए यह संभव हो सका है। तो हमारे माध्यम से आत्मा प्राप्त हो सकता है, ऐसा है। क्या भगवान को पहचाने बिना चल सकता है?
करोड़ों जन्मों के पुण्य जागें तब 'ज्ञानी' के दर्शन होते हैं, नहीं