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खंड : २
व्यवहार ज्ञान
[१] जीवन जीने की कला!
ऐसी 'लाइफ' में क्या सार? इस जीवन का हेतु क्या होगा, वह समझ में आता है? कोई हेतु तो होगा न? छोटे थे, फिर बूढ़े होते हैं और फिर अर्थी निकालते हैं। जब अर्थी निकालते हैं, तब दिया हुआ नाम ले लेते हैं। यहाँ आए कि तुरंत ही नाम दिया जाता है, व्यवहार चलाने के लिए! जैसे ड्रामे में भर्तृहरि नाम देते हैं न? 'ड्रामा' पूरा तब फिर नाम पूरा। इस प्रकार ये व्यवहार चलाने के लिए नाम देते हैं, और उस नाम पर बंगला, मोटर, पैसे रखते हैं और अर्थी निकालते हैं, तब वह सब ज़ब्त हो जाता है। लोग जीवन गुजारते हैं
और फिर गुज़र जाते हैं। ये शब्द ही 'इटसेल्फ' कहते हैं कि ये सब अवस्थाएँ हैं। गुज़ारा का मतलब ही राहखर्च! अब इस जीवन का हेतु मौज-मज़े करना होगा या फिर परोपकार के लिए होगा? या फिर शादी करके घर चलाना, वह हेतु होगा? यह शादी तो अनिवार्य होती है। किसीको शादी अनिवार्य न हो तो शादी हो ही नहीं। परंतु बरबस शादी होती है न?! यह सब क्या नाम कमाने का हेतु है? पहले सीता और ऐसी सतियाँ हो गई हैं, जिनका नाम हो गया। परंतु नाम तो यहीं का यहीं रहनेवाला है। लेकिन साथ में क्या ले जाना है? आपकी गुत्थियाँ !
आपको मोक्ष में जाना हो तो जाना, और नहीं जाना हो तो मत जाना।