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आप्तवाणी-३
सामने तो परमात्मा भी कुछ नहीं कह सकते। अभी आपके पास जो धन है, वह परमात्मा के पास भी नहीं है।
प्रश्नकर्ता : वह किस तरह?
दादाश्री : परमात्मा के पास रिकॉर्ड नहीं है। बोलने-चलने की अन्य मिकेनिकल शक्ति नहीं है। अत: वह दूसरों का कुछ भी कल्याण नहीं कर सकते! जब कि आप स्वसत्तासहित रहकर लोगों का कल्याण कर सकते हो! इसलिए बात को समझो। करना कुछ भी नहीं है। जहाँ-जहाँ पर करना है, वह मरता है और जहाँ समझना है, वहाँ पर मुक्त है। अपना कोई घोर अपमान करे तो उसकी वह सत्ता अपने पर चढ़ बैठनी नहीं चाहिए। अपमान तो क्या लेकिन नाक काट ले, तो भी किसी दूसरे की सत्ता को मान्य नहीं करें! (खुद पर) उसका असर नहीं होने दें।
__ अब आत्मा प्राप्त होने के बाद में क्या? जितना-जितना शुद्ध उपयोग रहेगा, उतनी स्वसत्ता उत्पन्न होगी और संपूर्ण स्वसत्ता उत्पन्न हो गई तो वह भगवान बन गया! पुद्गल परसत्ता में है, और आत्मा भी, जब तक स्वरूप का ज्ञान नहीं हो जाता, तब तक परसत्ता में ही है। ज्ञानी मिल जाएँ
और आत्मा स्वसत्ता में आ जाए, उसके बाद फिर पुद्गल का ज़ोर नरम पड़ता है अथवा वह मृतप्राय हो जाता है। जैसे-जैसे पुरुषार्थ बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे पुद्गल नरम पड़ता जाता है। एक घंटे शुद्धात्मा पद में बैठकर प्रतिक्रमण करो तो स्वसत्ता का अनुभव होगा।