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आप्तवाणी-३
यह जो अच्छा-बुरा दिखता है, वह पुद्गल की विभाविक अवस्था है, उसके विभाग मत करना कि यह अच्छा है और यह बुरा है। इन द्वन्द्ववालों ने विभाजित किया है। ये विकल्प हैं। निर्विकल्पी को अच्छाबुरा दोनों ही 'विभाविक अवस्था' दिखती है।
परमाणुओं की सूक्ष्मता, कितनी?! प्रश्नकर्ता : स्थूल, सूक्ष्म, सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम इन सबकी बाउन्ड्री कौन-सी?
दादाश्री : स्थूल तो वह है जो इन सब डॉक्टरों को दिखता है। बड़े-बड़े दूरबीन और माइक्रोस्कोप से दिखता है, वह भी स्थल ही कहलाता है। विश्रसा सूक्ष्मतम है और प्रयोगसा सूक्ष्मतर, और जो परमाणु खिंचकर परिणामित होकर अंदर इकट्ठे हो गए, वे मिश्रसा परमाणु सूक्ष्म कहलाते हैं। मिश्रसा, वह इफेक्टिव बॉडी है और प्रयोगसा कारणदेह है।
प्रश्नकर्ता : ये 'साइन्टिस्ट' जिन्हें 'ऐटम्स' और 'इलेक्ट्रॉन्स' कहते हैं, वे किस हद तक की सूक्ष्मता कहलाती है?
दादाश्री : वह सब स्थूल में जाता है। वैज्ञानिकों ने जितनी-जितनी खोज की हैं, वे सभी स्कूल में कही जाएँगी। 'ज्ञानीपुरुष' जिन परमाणुओं की बात करते हैं, उन्हें सिर्फ केवली ही देख सकते हैं।
पुद्गल, तत्वस्वरूप से अविनाशी प्रश्नकर्ता : आत्मा सत्य है, ऐसा क्यों कहते हैं? पुद्गल क्या है?
दादाश्री : आत्मा सत्य नहीं है, लेकिन सत् है। पुद्गल भी सत् है। पुद्गल के गुणधर्म हैं, और पर्याय भी हैं। लेकिन पर्याय बदलते रहते हैं। पर्याय विनाशी हैं। आत्मा खुद वस्तु के रूप में है, स्वतंत्र है, गुणधर्म सहित है। सत्-आत्मा ही परमात्मा कहलाता है।
प्रश्नकर्ता : पुद्गल सत् है, वह किस तरह से?
दादाश्री : आत्मा सत् है, पुद्गल भी सत् है। आत्मा अविनाशी है। पुद्गल भी अविनाशी है। आत्मा के पर्याय हैं, पुद्गल के भी पर्याय हैं।