Book Title: Aptavani Shreni 03
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 306
________________ आप्तवाणी-३ २५७ कि 'मैं नापास हो गया हूँ।' 'पति को हार्ट में दु:ख रहा है' ऐसा कहे तो उसे विचार आता है कि 'हार्ट फेल' हो गया तो क्या होगा? चारों ओर से विचार घेर लेते हैं, चैन नहीं लेने देते। _ 'ज्ञानीपुरुष' इस संसारजाल से छूटने का रास्ता दिखाते हैं, मोक्ष का मार्ग दिखाते हैं और रास्ते पर ला देते हैं और आपको लगता है कि 'हम इस उपाधी में से छूट गए!' ऐसी भावना से छुड़वानेवाले मिलते ही हैं यह सब परसत्ता है। खाते हैं, पीते हैं, बच्चों की शादियाँ करवाते हैं वह सब परसत्ता है। अपनी सत्ता नहीं है। ये सभी कषाय अंदर बैठे हैं। उनकी सत्ता है। 'ज्ञानीपुरुष' 'मैं कौन हूँ?' उसका ज्ञान देते हैं तब इन कषायों से, इस जंजाल में से छुटकारा होता है। यह संसार छोड़ने से या धक्के मारने से छूटे ऐसा नहीं है, इसलिए ऐसी कोई भावना करो कि इस संसार में से छूटा जाए तो अच्छा। अनंत जन्मों से छूटने की भावना हुई है, लेकिन मार्ग का जानकार चाहिए या नहीं चाहिए? मार्ग दिखानेवाले 'ज्ञानीपुरुष' चाहिए। जैसे चिकनी पट्टी शरीर पर चिपकाई हो, तो उसे उखाड़ें फिर भी वह उखड़ती नहीं। बाल को साथ में खींचकर उखड़ती है, उसी तरह यह संसार चिकना है। 'ज्ञानीपुरुष' दवाई दिखाएँ तब वह उखड़ता है। यह संसार छोड़ने से छूटे ऐसा नहीं है। जिसने संसार छोड़ा है, त्याग लिया है, वह उसके कर्म के उदय ने छुड़वाया है। हर किसीको उसके उदयकर्म के आधार पर त्यागधर्म या गृहस्थधर्म मिला होता है। समकित प्राप्त हो, तभी से सिद्धदशा प्राप्त होती है। यह सब आप चलाते नहीं हैं। क्रोध-मान-माया-लोभ कषाय चलाते हैं। कषायों का ही राज है। 'खुद कौन है?' उसका भान हो तब कषाय जाते हैं। क्रोध हो तब पछतावा होता है, लेकिन भगवान का बताया हुआ प्रतिक्रमण करना नहीं आए तो क्या फायदा होगा? प्रतिक्रमण करने आएँ तो छुटकारा होगा। ये कषाय चैन से घड़ीभर भी बैठने नहीं देते। बेटे की शादी के

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