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आप्तवाणी-३
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शक्तिवाला हूँ' बोले तो वे शक्तियाँ प्रकट होती जाती हैं। 'ज्ञानीपुरुष' जो रास्ता दिखाएँ, उस रास्ते चलकर छूट जाना है, नहीं तो छूटा जा सके ऐसा नहीं है। इसीलिए वे कहें उस रास्ते पर चलकर छूट जाना है।
कोई गा रहा हो और उसकी मज़ाक उड़ाओ, उस पर चिढ़ो या और कुछ करो तो वह उसकी विराधना कहलाएगी। विराधना का फल भयंकर आता है। और आराधना करो कि बहुत अच्छा, बहुत अच्छा' तो आपको भी वह आ जाएगा।
आत्मा की कितनी सारी शक्तियाँ हैं? कोई ज़मीन का पूछे तो तुरन्त जवाब देता है कि इतनी बीघा है, आकार पूछे तो कहता है 'ऐसा है'। सामने से किसी आदमी को आता हुआ देखे तो तुरन्त कहेगा कि चाचा ससुर आए हैं! कभी भी कुछ भी पूछो तो भी कितनी तरफ का लक्ष्य एट ए टाइम रखता है!
___आत्मा की चैतन्य शक्ति किससे आवृत है? 'यह चाहिए और वह चाहिए', लोगों की ज़रूरते हैं, तो उनका देखकर हम भी सीख गए वह ज्ञान। इसके बगैर नहीं चलेगा। मेथी की भाजी के बगैर नहीं चलेगा, ऐसे करते-करते उलझ गया! अनंत शक्तिवाला है, उस पर पत्थर डालते रहे!
आत्मा : अगुरु-लघु स्वभाव आत्मा अगुरु-लघु स्वभाववाला है। अगुरु-लघु का मतलब अगुरुअलघु! आत्मा गुरु नहीं है, लघु नहीं है, मोटा नहीं है, पतला नहीं है, ऊँचा नहीं है, नीचा नहीं हैं, आत्मा अगुरु-लघु स्वभावाला है। अन्य सबकुछ गुरुलघु स्वभाववाले हैं। क्रोध-मान-माया-लोभ, राग-द्वेष, ये सभी गुरु-लघु स्वभाववाले हैं। जब क्रोध आता है तब शुरूआत में कम होता है, फिर बढ़ते-बढ़ते शिखर तक पहुँचता है और वहाँ से वापस उतरने लगता है, फिर खत्म हो गया, ऐसा पता चलता है; जब कि आत्मा में चढाव-उतार होता ही नहीं। ये राग-द्वेष भी गुरु-लघु स्वभाववाले हैं। आत्मा का और राग-द्वेष का, इन दोनों का कोई लेना-देना ही नहीं है। यह तो आरोपित भाव है कि आत्मा को राग होता है, द्वेष होता है। ये व्यवहार के भाव