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आत्मा, तत्वस्वरूपी
आत्मा : कल्पस्वरूप
आत्मा का स्वभाव कैसा है ? अचिंत्य चिंतामणि है । अत: जैसा चिंतन करता है, तुरन्त ही वैसा हो जाता है।
आत्मा कल्पस्वरूप है । अतः जब उसका लाइट बाहर गया तो फिर अहंकार उत्पन्न हो गया । वह खुद चिंतवन नहीं करता है, लेकिन जैसे ही अहंकार का आरोपण होने पर चिंतवन होता है, तब वैसे ही विकल्प उत्पन्न हो जाते हैं!
प्रश्नकर्ता : यानी कि हर एक सेकन्ड में आत्मा का स्वरूप बदलता जाता है? हम लोग तो हर एक सेकन्ड पर चिंतवन बदलते हैं !
दादाश्री : हर एक सेकन्ड पर नहीं, सेकन्ड के छोटे से छोटे भाग में भी बदलता रहता है । लेकिन इतना अधिक उपयोग नहीं रहता किसीका ।
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तबियत नरम हो तो ऐसा कहना कि, 'चंदूलाल की तबियत नरम रहती है।' वर्ना यदि 'मेरी तबियत नरम रहती है' कहा कि वापस असर हो जाएगा, चिंतवन करे वैसा हो जाएगा ! हमें तो डॉक्टर पूछे तब मुँह से बोलते हैं कि, 'खांसी हुई है', लेकिन तुरन्त ही उसे मिटा देते हैं । हमें कहना पड़ता है कि चंदूलाल को खांसी हुई है । लेकिन क्या शुद्धात्मा को खांसी हुई है? वह तो जिसकी दुकान का माल है, उसे ज़ाहिर करना पड़ता है, लेकिन उसे अपने सिर पर ले लें, वह किस काम का ?
आत्मा में दुःख नाम का गुण नहीं है, चिंता नाम का गुण नहीं है। लेकिन यदि उल्टा, विभाविक चिंतवन करे तो विभाविक गुण उत्पन्न होता