Book Title: Aptavani Shreni 03
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 320
________________ आप्तवाणी-३ २७१ गरड़ बुलवाता है! घनचक्कर, अंदर पता लगा न, क्या चल रहा है? तब कहे कि, 'उसमें मी काय करूँ?' और कुदरत का कैसा है? पेट में पाचक रस, 'बाइल' पड़ता है, दूसरी चीजें पड़ती है, सुबह ‘ब्लड' 'ब्लड' की जगह, 'यूरिन' 'यूरिन' की जगह, 'संडास' 'संडास' के स्थान पर पहुँच जाता है। कैसा पद्धति अनुसार सुंदर व्यवस्था की हुई है! कुदरत अंदर कितना बड़ा काम करती है! यदि डॉक्टर को एक दिन यह अंदर का पचाने का काम सौंपा हो तो वह मनुष्य को मार डाले! अंदर में पाचक रस डालना, 'बाइल' डालना, आदि डॉक्टर को सौंपा हो तो डॉक्टर क्या करेगा? भूख नहीं लगती इसलिए आज ज़रा पाचक रस ज़्यादा डालने दो। अब कुदरत का नियम कैसा है कि पाचक रस ठेठ मरते दम तक चलें उस अनुसार डालती है। अब ये उस दिन, रविवार के दिन पाचकरस ज़्यादा डाल देता है, इसलिए बुधवार को अंदर बिल्कुल पचेगा ही नहीं, क्योंकि बुधवार के हिस्से का भी रविवार को डाल दिया। कुदरत के हाथ में कितनी अच्छी बाज़ी है! और एक आपके हाथ में व्यापार आया, और उसमें भी व्यापार आपके हाथ में तो है ही नहीं। आप सिर्फ मान बैठे हो कि मैं व्यापार करता हूँ, इसलिए झूठी हाय-हाय, हाय-हाय करते हो। दादर से सेन्ट्रल टेक्सी में जाना हुआ, तब वह मन में टकरा जाएगी-टकरा जाएगी करके डर जाता है। अरे! कोई बाप भी टकरानेवाला नहीं है। तू अपनी तरह से आगे देखकर चल। तेरा फ़र्ज़ कितना? तुझे आगे देखकर चलना है, इतना ही। वास्तव में तो वह भी तेरा फ़र्ज़ नहीं है। कुदरत तेरे पास से वह भी करवाती है। लेकिन आगे देखता नहीं है और दख़ल करता है। कुदरत तो इतनी अच्छी है! यह अंदर इतना बड़ा कारखाना चलता है तो बाहर नहीं चलेगा? बाहर तो कुछ चलाने को है ही नहीं। क्या चलाना है? प्रश्नकर्ता : कोई जीव उल्टा करे, तो वह भी उसके हाथ में सत्ता नहीं है? दादाश्री : ना, सत्ता नहीं है, लेकिन उल्टा हो वैसा भी नहीं है, लेकिन उसने उल्टे-सुल्टे भाव किए इसलिए यह उल्टा हो गया। खुद ने कुदरत के इस संचालन में दख़ल दी है, नहीं तो ये कौए, कुत्ते ये

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