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आप्तवाणी - ३
मत। बाकी, जगत् तो सारी रात नल खुला रखे और मटका उल्टा रखे, ऐसा है ! खुद का ही सर्वस्व बिगाड़ रहे हैं । वे समझते हैं कि मैं लोगों का बिगाड़ रहा हूँ। लोगों का तो कोई बिगाड़ सके ऐसा है ही नहीं, कोई ऐसा जन्मा ही नहीं ।
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हिन्दुस्तान में प्रकृति नापी नहीं जा सकती, यहाँ तो भगवान भी भुलावे में आ जाएँ। फॉरिन में तो एक दिन उसकी वाइफ के साथ सच्चा रहा तो सारी ज़िंदगी सच्चा ही रहता है ! और यहाँ तो सारा दिन प्रकृति को देखते रहें, फिर भी प्रकृति नापी नहीं जा सकती। यह तो कर्म के उदय घाटा करवाते हैं, नहीं तो ये लोग घाटा उठाएँगे? अरे, मरें फिर भी घाटा नहीं होने दें, आत्मा को एक तरफ थोड़ी देर बैठाकर फिर मरें ।
'पलटकर' मतभेद टाला
दादाश्री : भोजन के समय टेबल पर मतभेद होता है ?
प्रश्नकर्ता : वह तो होता है न?
दादाश्री : क्यों, शादी करते समय ऐसा क़रार किया था ? प्रश्नकर्ता : ना।
दादाश्री : उस समय तो क़रार यह किया था कि 'समय वर्ते सावधान।' घर में वाइफ के साथ 'तुम्हारा और मेरा' ऐसी वाणी नहीं होनी चाहिए। वाणी विभक्त नहीं होनी चाहिए, वाणी अविभक्त होनी चाहिए, आप अविभक्त कुटुंब के हैं न?
हमें हीराबा के साथ कभी भी मतभेद पड़ा नहीं, कभी भी वाणी में ‘मेरा-तेरा' हुआ नहीं। लेकिन एक बार हमारे बीच मतभेद पड़ गया था। उनके भाई के वहाँ पहली बेटी की शादी थी । उन्होंने मुझसे पूछा कि, 'उन्हें क्या देना है?' तब मैंने उन्हें कहा कि, 'जो आपको ठीक लगे वह, लेकिन घर में ये तैयार चाँदी के बरतन पड़े हुए हैं, वे दे दीजिए! नया मत बनवाना।' तब उन्होंने कहा कि, 'आपके ननिहाल में तो मामा की बेटी की शादी हो तो बड़े-बड़े थाल बनवाकर देते हैं !' वे मेरे और आपके शब्द बोले तब से ही मैं समझ गया कि आज आबरू गई अपनी । हम एक के