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[५] स्वपरिणाम - परपरिणाम
स्वपरिणति अर्थात्... परिणति का मतलब क्या है? जो स्वाभाविक रूप से होता ही रहे, जिसमें कुछ भी करना नहीं पड़े, वह। इस पुद्गल की जो क्रियाएँ 'व्यवस्थित' करता है, उसमें 'मैं कर रहा हूँ' ऐसा भान उत्पन्न नहीं होना चाहिए। ये 'व्यवस्थित' के परिणाम हैं, उन्हें भगवान ने परपरिणाम कहा है। परपरिणाम को खुद 'मैं कर रहा हूँ' ऐसा मानना, वही परपरिणति कहलाता है। और उसीसे संसार है। स्वपरिणति को भगवान ने मोक्ष कहा है।
प्रश्नकर्ता : स्वपरिणति का अर्थ क्या है?
दादाश्री : 'चंदूलाल' जो कुछ करता है, वह 'व्यवस्थित' करवाता है, उसे 'हमें' 'देखते' रहना है, उसी को स्वपरिणति कहते हैं। अच्छेबुरे की झंझट नहीं करनी है। उसमें राग भी नहीं करना है और द्वेष भी नहीं रखना है।
ज्ञानी के पास से समझ लेने जैसा है दुनिया के लोगों को यदि समझाएँ कि यह परपरिणति है और यह स्वपरिणति है, ऐसा उन्हें सिखाएँ, गाने को कहें तो फिर भी वापस घर जाकर भूल ही जाएँगे! वह तो जब तक कषायभावों को 'ज्ञानीपुरुष' निर्मूल नहीं कर देते, तब तक काम नहीं हो पाता। कषायभावों से जगत् विद्यमान है। कषायरूपी कड़ी से आत्मा बँधा हुआ है। जिन्होंने कषायों को जीत लिया है, वे अरिहंत कहलाए।