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[३] पुद्गल, तत्व के रूप में
पुद्गल की गुणशक्ति कौन-सी? प्रश्नकर्ता : जिस तरह अपने आत्मा में अनंत शक्तियाँ हैं, अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन है, उसी तरह पुद्गल परमाणुओं के जो स्वाभाविक गुण हैं, उनकी शक्ति कौन-सी है?
दादाश्री : इस पुद्गल की शक्ति से तो यह पूरा जगत् दिखता है। आत्मा किसी जगह पर दिखता ही नहीं। इस पुद्गल की भी कितनी अधिक शक्ति है! यह तत्व कितना अद्भुत है ! वह भी भयंकर शक्ति सहित है। वह निरंतर परिवर्तित होता ही रहता है। पुद्गल, वह अनंत प्रकार से परिवर्तित होता ही रहता है। इस चाय में अगर आप थोड़ा पानी ज़्यादा डालो तो स्वाद अलग आता है। पानी ज़रा कम डालो तो अलग स्वाद आता है। एक घंटे बाद पीओ तो अलग स्वाद आता है। यह एक ही पुद्गल है, लेकिन इसके अनंत पर्याय, अनंत प्रकार से परिवर्तित होते ही रहते हैं! आत्मा तत्व स्वरूप से है और पुद्गल भी तत्व स्वरूप से है। चाहे कितनी भी अवस्थाएँ बदल जाएँ, इसके बावजूद भी कोई भी चीज़ राई जितनी भी न घटती है, न बढ़ती है।
पुद्गल अर्थात् पूर + गल। जो पूरण-गलन होता है, वह सभी पुद्लग कहलाता है। यह जगत् कितना सुंदर लगता है। इसीसे तो फँसाव खड़ा हुआ है। सुंदर भी लगता है और बदसूरत भी लगता है! क्योंकि सापेक्ष है। पुद्गल तो स्वतंत्र गुणोंवाला है। रूप, रस, स्पर्श और गंध इसके गुण हैं, लेकिन इसमें ज्ञायकभाव नहीं है। पुद्गल खुद जान नहीं सकता। उसे लागणी (भावुकतावाला प्रेम, लगाव) का अनुभव भी नहीं होता।