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[९] प्रतिष्ठित आत्मा : शुद्धात्मा
जगत् का अधिष्ठान क्या है? 'प्रतिष्ठित आत्मा' इस जगत का अधिष्ठान है। 'प्रतिष्ठित आत्मा' कौन है? 'मैं चंदूलाल हूँ, यह देह मेरी है, यह मेरा है, मन मेरा है' ऐसी प्रतिष्ठा करने से प्रतिष्ठित आत्मा बनता है। यह किससे उत्पन्न हुआ? अज्ञान में से। इस मूर्ति में प्रतिष्ठा करो तो वह फल देती है, जबकि यह तो भगवान के साक्षी में प्रतिष्ठा होती है, वह कैसा फल देगी!
यह 'प्रतिष्ठित आत्मा,' यह हमने नया शब्द दिया है। लोगो को सादी भाषा में समझ में आ जाए और भगवान की बात आसानी से समझ में आए, उस तरह से रखा है।
प्रश्नकर्ता : 'प्रतिष्ठित आत्मा' पुद्गल है या चेतन है?
दादाश्री : पुद्गल है, लेकिन चेतन भाव को प्राप्त किए हुए है, उसे हम 'चार्ज हो चुका है', ऐसा कहते हैं। वह विशेषभाव से परिणमित होता हुआ पुद्गल है। उसे हम मिश्रचेतन कहते हैं।
प्रश्नकर्ता : आहार, भय, निद्रा और मैथुन, ये चार संज्ञाएँ गांठें हैं या प्रतिष्ठित आत्मा का स्वभाव है?
दादाश्री : वह प्रतिष्ठित आत्मा का स्वभाव नहीं है, प्रतिष्ठित आत्मा, 'इगोइज़म' का पुतला है। जितने भाव भरे हुए हैं, उतने भाव उत्पन्न हुए।
आहार देखा कि आहार की गांठ फूटती है। लकडी दिखी तो भय की गांठ फूटती है। आहार, भय, मैथुन, निद्रा वे संज्ञाएँ गांठों के रूप में हैं; संयोग मिला के गांठ फूटती है।