________________
२५६
आप्तवाणी-३
घर में पति-पत्नी दोनों निश्चय करें कि मुझे 'एडजस्ट' होना है तो दोनों का हल आए। वे ज़्यादा खींचे तो 'आपको' एडजस्ट हो जाना है, तो हल आएगा। एक व्यक्ति का हाथ दुःखता था, लेकिन वह दूसरे को नहीं बताता था, लेकिन दूसरे हाथ से हाथ दबाकर, दूसरे हाथ से एडजस्ट किया। ऐसे एडजस्ट हो जाएँगे तो हल आएगा। मतभेद से तो हल नहीं आता। मतभेद पसंद नहीं, फिर भी मतभेद पड़ जाते हैं न? सामनेवाला अधिक खींचा-तानी करे तो आप छोड़ देना और ओढ़कर सो जाना, यदि नहीं छोड़ेंगे, दोनों खींचते रहेंगे तो दोनों को ही नींद नहीं आएगी और सारी रात बिगड़ेगी। व्यवहार में, व्यापार में, भागीदारी में कैसा सँभालते हैं, तो इस संसार की भागीदारी में हमें नहीं सँभाल लेना चाहिए? संसार तो झगड़े का संग्रहस्थान है। किसी के यहाँ दो आने, किसी के यहाँ चवन्नी और किसे के यहाँ सवा रुपये तक पहुँच जाता है।
यहाँ घर पर 'एडजस्ट' होना आता नहीं और आत्मज्ञान के शास्त्र पढ़ने बैठते हैं! अरे रख न एक तरफ! पहले यह सीख ले। घर में 'एडजस्ट' होना तो कुछ आता नहीं है। ऐसा है यह जगत् ! इसलिए काम निकाल लेने जैसा है।
'ज्ञानी' छुड़वाएँ, संसारजाल से प्रश्नकर्ता : इस संसार के सभी बहीखाते खोटवाले लगते हैं, फिर भी किसी समय नफेवाले क्यों लगते हैं?
दादाश्री : जो बहीखाते खोटवाले लगते हैं, उनमें से कभी यदि नफेवाला लगे तो बाकी कर लेना। यह संसार दूसरे किसी से खड़ा नहीं हुआ है। गुणा ही हुए हैं। मैं जो रकम आपको दिखाऊँ उससे भाग कर डालना, इससे फिर कुछ बाकी नहीं रहेगा। इस तरह से पढ़ाई की जा सके तो पढ़ो, नहीं तो 'दादा की आज्ञा मुझे पालनी ही है, संसार का भाग (डिवाइड) लगाना ही है।' ऐसा निश्चित किया कि तबसे भाग हुआ ही समझो।
बाकी ये दिन किस तरह गुज़ारने वह भी मुश्किल हो गया है। पति आए और कहेगा कि 'मेरे हार्ट में दुःख रहा है।' बच्चे आएँ और कहेंगे