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आप्तवाणी-३
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हुआ होता है। अर्थात् जो 'इगोइज़म' नहीं बढ़ाना है, वह 'इगोइज़म' बहुत बढ़ जाता है।
इस जगत् का कुदरती नियम क्या है कि आप अपने फल दूसरों को दोगे तो कुदरत आपका चला लेगी। यही गुह्य साइन्स है। यह परोक्ष धर्म है। बाद में प्रत्यक्ष धर्म आता है, आत्मधर्म अंत में आता है। मनुष्य जीवन का हिसाब इतना ही है! अर्क इतना ही है कि मन-वचन-काया का उपयोग दूसरों के लिए करो।