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आप्तवाणी-३
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और मन में ऐसा मत मान बैठना कि सब चढ़ बैठेंगे तो क्या करूँगा? वे क्या चढ़ बैठेंगे? चढ़ बैठने की किसी के पास शक्ति ही नहीं है। ये सब कर्म के उदय से लटू नाच रहे हैं। इसलिए जैसे-तैसे करके आज का शुक्रवार बिना क्लेश किए बिता दो, कल की बात कल देख लेंगे। दूसरे दिन कोई पटाखा फूटने का हुआ तो कैसे भी उसे ढंक देना, फिर देख लेंगे। ऐसे दिन बिताने चाहिए।
वह सुधरा हुआ कब तक टिके? हर एक बात में हम सामनेवाले के साथ एडजस्ट हो जाएँ तो कितना आसान हो जाएगा। हमें साथ में क्या ले जाना है? कोई कहेगा कि भाई उसे सीधा करो। अरे, उसे सीधा करने जाएगा तो तू टेढ़ा हो जाएगा। इसलिए वाइफ को सीधा करने मत जाना, जैसी हो उसे करेक्ट कहना। आप उसके साथ हमेशा का साथ हो तो अलग बात है। यह तो एक जन्म के बाद जाने कहाँ बिखर पड़ेंगे। दोनों के मरणकाल अलग, दोनों के कर्म अलग। कुछ लेना भी नहीं और देना भी नहीं! यहाँ से तो किसके यहाँ जाएगी, उसकी क्या खबर? आप सीधी करो और अगले जन्म में जाएगी किसी और के भाग्य में!
प्रश्नकर्ता : उसके साथ कर्म बंधे होंगे तो दूसरे जन्म में मिलेंगे तो सही न?
दादाश्री : मिलेंगे, लेकिन दूसरी तरह से मिलेंगे। किसी की औरत बनकर हमारे यहाँ बात करने आएगी। कर्म के नियम हैं न! यह तो ठौर नहीं
और ठिकाना भी नहीं। कोई ही पुण्यशाली मनुष्य ऐसे होते हैं कि जो कुछ जन साथ में रहें। देखो न, नेमिनाथ भगवान, राजुल के साथ नौ जन्मों तक साथ ही साथ थे न! ऐसा हो तो बात अलग है। यह तो दूसरे जन्म का ही ठिकाना नहीं है। अरे, इस जन्म में ही चले जाते हैं न! उसे डायवोर्स कहते हैं न? इसी जन्म में दो पति करती है, तीन पति करती है!
__ एडजस्ट हो जाएँ, तब भी सुधरे इसलिए आपको उन्हें सीधा नहीं करना है। वे आपको सीधा न करें। जैसा मिला वही सोने का। प्रकृति किसी की, कभी भी सीधी नहीं हो