Book Title: Aptavani Shreni 03
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 313
________________ २६४ आप्तवाणी-३ बिगड़े तब भी नफा ६६,६१६ ही रहेगा, तो कौन-सा व्यापार करना चाहिए? हमारे बड़े-बड़े व्यापार चलते हैं, लेकिन व्यापार का कागज़ 'हमारे' ऊपर नहीं आता। क्योंकि व्यापार का नफा और व्यापार का नुकसान भी हम व्यापार के खाते में ही डालते हैं। यदि मैं नौकरी कर रहा होता और जितनी पगार मिलती, तो उतने ही पैसे मैं घर में देता हूँ। बाकी का नफा भी व्यापार का और नुकसान भी व्यापार के खाते में। पैसों का बोझा रखने जैसा नहीं है। बैंक में जमा हुए तब चैन की साँस ली, फिर जाएँ तब दुःख होता है। इस जगत् में कहीं भी चैन की साँस लेने जैसा नहीं है। क्योंकि 'टेम्परेरी' है। व्यापार में हिताहित व्यापार कौन-सा अच्छा कि जिसमें हिंसा न समाती हो, किसीको अपने व्यापार से दुःख न हो। यह तो किराने का व्यापार हो तो एक सेर में से थोड़ा निकाल लेते हैं। आजकल तो मिलावट करना सीख गए हैं। उसमें भी खाने की वस्तुओं में मिलावट करे तो जानवर में, चौपयों में जाएगा। चार पैरवाला हो जाए, फिर गिरे तो नहीं न? व्यापार में धर्म रखना, नहीं तो अधर्म प्रवेश कर जाएगा। प्रश्नकर्ता : अब व्यापार कितना बढ़ाना चाहिए? दादाश्री : व्यापार इतना करना कि आराम से नींद आए, जब उसे धकेलना चाहें तब वह धकेला जा सके, ऐसा होना चाहिए। जो आनेवाली नहीं हो, उस परेशानी को को नहीं बुलाना नहीं चाहिए। ब्याज लेने में आपत्ति? प्रश्नकर्ता : शास्त्रों में ब्याज लेने का निषेध नहीं है न? दादाश्री : हमारे शास्त्रों ने ब्याज पर आपत्ति नहीं उठाई है, परंतु सूदखोर हो गया तो नुकसानदायक है। सामनेवाले को दुःख न हो तब तक ब्याज लेने में परेशानी नहीं है।

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