Book Title: Aptavani Shreni 03
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

View full book text
Previous | Next

Page 327
________________ २७८ आप्तवाणी-३ बड़े हों तो उनका विनय रखना चाहिए और जो ज्ञानवृद्ध हुए हों, वे पूज्य माने जाते हैं। सत्संग में से हम घर समय पर जाते हैं। यदि रात को बारह बजे दरवाज़ा खटखटाएँ तो वह कैसा दिखेगा? घरवाले मुँह पर बोलेंगे कि 'कभी भी आएँगे तो चलेगा।' परंतु उनका मन तो छोड़ेगा नहीं न? वह तो तरहतरह का दिखाएगा। हमसे उन्हें ज़रा-सा भी दु:ख कैसे दिया जाए? यह तो नियम कहलाता है और नियम के आधीन तो रहना ही पड़ेगा। इसी तरह दो बजे उठकर 'रियल' की भक्ति करें तो कोई कुछ बोलता है? ना, कोई नहीं पूछता। शुद्ध व्यवहार : सद्व्यवहार प्रश्नकर्ता : शुद्ध व्यवहार किसे कहना चाहिए? सद्व्यवहार किसे कहना चाहिए? दादाश्री : ‘स्वरूप' का ज्ञान प्राप्त होने के बाद ही शुद्ध व्यवहार शुरू होता है, तब तक सद्व्यवहार होता है। प्रश्नकर्ता : शुद्ध व्यवहार और सद्व्यवहार में फर्क क्या है? दादाश्री : सद्व्यवहार अहंकार सहित होता है और शुद्ध व्यवहार निरहंकारी होता है। शुद्ध व्यवहार संपूर्ण धर्मध्यान देता है और सद्व्यवहार अल्प अंश में धर्मध्यान देता है। जितना शुद्ध व्यवहार होता है, उतना शुद्ध उपयोग रहता है। शुद्ध उपयोग मतलब 'खुद' ज्ञाता-दृष्टा होता है, लेकिन देखें क्या? तब कहे, शुद्ध व्यवहार को देखो। शुद्ध व्यवहार में निश्चय, शुद्ध उपयोग होता है। कृपालुदेव ने कहा है: गच्छमत नी जे कल्पना ते नहीं सद्व्यवहार। सभी संप्रदाय, वे कल्पित बातें हैं। उनमें सद्व्यवहार भी नहीं है तो फिर वहाँ शुद्ध व्यवहार की बात ही क्या करनी? शुद्ध व्यवहार, वह निरहंकारी पद है, शुद्ध व्यवहार स्पर्धा रहित है। हम यदि स्पर्धा में उतरें तो राग-द्वेष होंगे। हम तो सभी से कहते हैं कि आप जहाँ हो वहीं ठीक हो। और आपको कोई कमी हो तो यहाँ हमारे पास आओ। हमारे यहाँ

Loading...

Page Navigation
1 ... 325 326 327 328 329 330 331 332