Book Title: Aptavani Shreni 03
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 329
________________ आप्तवाणी - ३ जाए तो आप मेरी आज्ञा में नहीं हैं, हमारी पाँच आज्ञा आपको भगवान महावीर जैसी स्थिति में रखें, ऐसी हैं । व्यवहार में हमारी आज्ञा आपको बाधक नहीं है, आदर्श व्यवहार में रखें, ऐसी है । 'यह' ज्ञान तो व्यवहार को कम्प्लीट आदर्श बनाए, ऐसा है । मोक्ष किसका होगा? आदर्श व्यवहारवाले का । और 'दादा' की आज्ञा वह आदर्श व्यवहार लाती है। ज़रासी भी किसी की भूल आए तो वह आदर्श व्यवहार नहीं है। मोक्ष कोई ‘गप्प' नहीं है, वह हकीकत स्वरूप है । मोक्ष कोई वकीलों का खोजा हुआ नहीं है। वकील तो 'गप्प' में से खोज लें, वैसा यह नहीं है, यह तो हकीकत स्वरूप है। २८० एक भाई मुझे एक बड़े आश्रम में मिले। मैंने उनसे पूछा कि, 'यहाँ कहाँ से आप?' तब उन्होंने कहा कि, 'मैं इस आश्रम में पिछले दस सालों से रह रहा हूँ।' तब मैंने उनसे कहा कि, 'आपके माँ-बाप गाँव में बहुत गरीब हालत में अंतिम अवस्था में दुःखी हो रहे हैं।' तब उन्होंने कहा कि, 'उसमें मैं क्या करूँ? मैं उनका करने जाऊँ तो मेरा धर्म करने का रह जाएगा।' इसे धर्म कैसे कहा जाए? धर्म तो उसका नाम कि जो माँ-बाप, भाई सबके साथ व्यवहार रखे । व्यवहार आदर्श होना चाहिए। जो व्यवहार खुद के धर्म को धिक्कारे, माँ-बाप के संबंध को ठुकराए, उसे धर्म कैसे कहा जाएगा? अरे! मन में दी गई गाली या अँधेरे में किए गए कृत्य, वे सब भयंकर गुनाह हैं ! वह समझता है कि, 'मुझे कौन देखनेवाला है, और कौन इसे जाननेवाला है?' अरे, यह नहीं है पोपाबाई का राज ! यह तो भयंकर गुनाह है। इन सबको अँधेरे की भूलें ही परेशान करती हैं। व्यवहार आदर्श होना चाहिए। यदि व्यवहार में अत्यधिक सतर्क हुए तो कषायी हो जाते हैं । यह संसार तो नाव है, और नाव में चाय-नाश्ता सब करना है, लेकिन समझना है कि इससे किनारे तक जाना है। I इसलिए बात को समझो। 'ज्ञानीपुरुष' के पास तो बात को केवल समझनी ही है, करना कुछ भी नहीं है । और जो समझकर उसमें समा गया तो हो गया वीतराग ! जय सच्चिदानंद

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